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________________ ७८ समरसिंह। आपके पीछे पट्टधर आचार्य कक्कसूरि महान् उपकारी हुए। इन्होंने सिन्धप्रान्त में धर्मोपदेश देनेके पश्चात् कच्छप्रान्त की ओर पर्यटन किया । आपने देवी को बलि दिये जानेवाले राजकुँअर की रक्षा कर उसे दीक्षित किया तथा कच्छप्रान्त के कोने कोने में अहिंसा का सन्देश पहुँचाया । भापके पट्टपर प्राचार्य देवगुप्तसूरि महान् चमत्कारी हुए । इन्होंने पञ्जाब भूमि में विहारकर सिद्ध पुत्राचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित कर जैनधर्म में दीक्षित कर बड़ा भारी उपकार किया । आपके पट्टपर प्राचार्य सिद्धसूरि बड़े ही तपस्वी और जैन मिशन के प्रचारक हुए। आपने भी अनेक प्रान्तों में विहारकर जैन-धर्मके मंडेको फहराया । यह इन आचार्यों के ही अनवरत परिश्रम का शुभ परिणाम था कि महाजन संघ की संख्या जो लाखों तक थी क्रोर्डो तक पहुंच गई और दिन-प्रतिदिन भाभिवृद्धि होने लगी।। भगवान् श्री पार्श्वनाथ की समुदाय पहले ही से निग्रन्थ नामसे सम्बोधित की जाती थी परन्तु आचार्य रत्नप्रभसूरिने उपकेशपुरके राजा और प्रजा को जैन बनाया वह समूह उपकेशवंशी (जिसे वर्तमान में मोसवाल कहते हैं ) कहलाने लगा। तथा इस समूहके प्रतिबोधक और उपदेशकों को उपकेशगच्छाचार्य की संज्ञा प्राप्त हुई और तदनुरूप यह समुदाय उपकेशगच्छ के नामसे १ देखो-जैमजाति-महोदय पञ्चम प्रकरण पृष्ठ ५२ से ६८ तक . २ " " " " . ... .६८ से ७४ , ३ " " " " " , ७४ से ८१ तक
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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