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जैन कथा कोष ४६ करना चाहिए। उसने नागदेव से फिर कहा—' पति से न सही, पुत्र से मिलने की इजाजत तो दे ही दीजिए। '
नागदेव ने कहा- 'तुम अपने पुत्र से नित्य मिल सकती हो; लेकिन सिर्फ रात के समय ही । सुबह होने से पहले ही यहाँ वापस लौट आना जरूरी है। यदि किसी दिन वहीं प्रभात हो गया तो तुम्हारे जूड़े से एक मृत सर्प गिरेगा । वह इस बात का प्रतीक होगा कि मेरी दी हुई सभी सुविधाएँ, उसी क्षण से समाप्त हो गई हैं। तब मेरा दिया हुआ उद्यान भी सदा के लिए छूट जायेगा ।'
आरामशोभा ने यह शर्त स्वीकार कर ली। नागदेव की दी हुई विद्या से वह रात्रि के समय अपने पुत्र के पास पहुँची । उसने अपने पुत्र को प्यार किया और प्रातः होने से पहले चली आयी । सब सो रहे थे, इसलिए उसके आगमन की बात किसी को मालूम न हो सकी।
अब आरामशोभा हरेक रात्रि को जाने लगी। एक दिन वह अपने उद्यान के फूल भी ले गई । उन फूलों से उसने अपने पुत्र के पालने को सजा दिया | सुबह राजा जितशत्रु ने फूल देखे तो समझ गया कि ये तो आरामशोभा के उद्यान के दिव्य पुष्प हैं। उसने नकली आरामशोभा से पूछा तो वह कोई सन्तोषजनक उत्तर न दे सकी। राजा समझ गया कि रात को असली आरामशोभा आती है और रात को ही चली जाती है। उसने उसे पकड़ने का निश्चय कर लिया ।
रात्रि को राजा कक्ष में छिपकर बैठ गया। आरामशोभा सदा की भाँति आयी और पुत्र को प्यार करने लगी। राजा ने उसकी कलाई कसकर पकड़ ली। उससे छिपकर आने का रहस्य पूछा। आरामशोभा ने विवश होकर पूरी घटना सुनाई। तब तक प्रभात हो गया । आरामशोभा के जुड़े से एक मृत सर्प गिरा । राजा चौंका । आरामशोभा ने कहा- 'स्वामी ! अब नागदेव द्वारा दी हुई सभी सुविधाएँ समाप्त हो गईं। अब वह दिव्य उद्यान जो मेरे साथ रहता था, वह भी नहीं रहेगा।' राजा ने सांत्वना दी- 'मुझे न उद्यान की जरूरत है, दिव्य सुविधाओं की । तुम मेरे साथ सुख से रहो । '
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आरामशोभा फिर सुख से रहने लगी। उसका पुत्र मलयसुन्दर भी कलाओं में निपुण हो गया । अब मलयसुन्दर युवराज था ।