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जैन कथा कोष ४७ इसके अलावा जब भी तू मेरा स्मरण करेगी, मैं तेरा कष्ट मिटाऊँगा।' यह कहकर देव अन्तर्ध्यान हो गया।
देव-प्रदत्त उद्यान की बात जानकर उसका पिता अग्निशर्मा तो बहुत प्रसन्न हुआ, लेकिन उसकी सौतेली माँ भीतर-ही-भीतर जल-भुन गई।
एक बार वह वन में अपनी गाएँ चरा रही थी, तभी पाटलिपुत्र का राजा अपनी चतुरंगिनी सेना सहित उधर आ निकला और उस उद्यान में विश्राम-हेतु ठहर गया। हाथियों की चिंघाड़ और घोड़ों की हिनहिनाहट से डरकर विद्युत्प्रभा की गाएँ इधर-उधर भागने लगीं। अपनी गायों को इकट्ठा करने के लिए विद्युत्प्रभा भी उनके पीछे भागी तो उसके पीछे-पीछे उद्यान भी चलने लगा। राजा इस कौतुक को देखकर बहुत चमत्कृत हुआ और उसने उसके साथ विवाह कर लिया तथा उसे नया नाम दिया-आरामशोभा।
आरामशोभा अब पाटलिपुत्र-नरेश जितशत्रु की पटरानी हो गई। वह बड़े सुख से रहने लगी। __इधर उसकी सौतेली माता अपनी पुत्री को भी रानी बनाने के स्वप्न देखने लगी। उसने अपने पति अग्निशर्मा के हाथों तीन बार विषमिश्रित मोदक भेजे, लेकिन रास्ते में एक वृक्ष पर रहने वाले यक्ष ने वे मोदक बदल दिये, उनके स्थान पर अमृतसम स्वादिष्ट मोदक रख दिये। राजा जितशत्रु सहित सभी ने वे मोदक खाये, लेकिन किसी का कुछ न बिगड़ा।
इस प्रकार तीन बार असफल होकर आरामशोभा की सौतेली माता ने नया नाटक रचा। उसे अपने पति द्वारा मालूम हो चुका था कि आरामशोभा गर्भवती है। उसने पति द्वारा जितशत्रु को कहलवाया कि 'आरामशोभा को भेज दें। पहली सन्तान पीहर (माता के घर) में ही होनी चाहिए, यही हमारे कुल की रीति है।' इस रीति के समक्ष राजा जितशत्रु विवश हो गया। उसने चार दासियों के साथ आरामशोभा को उसके पिता के साथ भेज दिया। ____ आरामशोभा को अपने घर आयी देखकर सौतेली माँ फूली न समाई। उसने उसे मारने का पक्का निश्चय कर लिया। अब वह उसे अपने हाथों ही कुएँ में धकेलकर मारना चाहती थी। - आरामशोभा ने एक सुन्दर और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम राजा जितशत्रु की इच्छा के अनुसार मलयसुन्दर रखा गया।
पुत्र-जन्म के दो-चार दिन बाद ही सौतेली माँ ने अपना षड्यन्त्र पूरा करने