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________________ पैंतीस वचनातिशय तीर्थंकरों की वाणी मेघ के समान गम्भीर होती है और वह कभी निष्फल नहीं जाती । उनकी वाणी इन पैंतीस अतिशयों से सम्पन्न होती है— १. लक्षण युक्त । २. उच्च स्वभाव युक्त । ३. ग्राम्य शब्दों से रहित । ४. मेघ जैसी गम्भीर । ५. प्रतिध्वनि युक्त । ६. सरल । ७. राग (स्वर) युक्त । अर्थ की गम्भीरता युक्त । ८. ६. पूर्वापरविरोध-रहित । १०. शिष्टतासूचक | ११. संदेहरहित । १२. पर - दोषों को प्रकट नहीं करने वाली । १३. श्रोताओं के हृदय को आनन्दित करने वाली । १४. देशकाल के अनुरूप । १५. विवेच्य विषय का अनुसरण करने वाली । १६. परस्पर सम्बद्ध और अतिविस्तार से रहित । जैन कथा कोष ३६१ १७. पद व वाक्यानुसारिणी । १८. प्रतिपाद्य विषय के बाहर न जाने वाली । १६. अमृत-सी मधुर । २०. मर्मघात से रहित । २१. धर्म-मोक्षरूप पुरुषार्थ की पुष्टि करने वाली । २२. अभिधेय अर्थ की गम्भीरता से युक्त । २३. आत्म-प्रशंसा व पर- निन्दा से मुक्त | २४. सर्वत्र श्लाघनीय । २५. कारक, लिंग आदि व्याकरणसम्मत । २६. श्रोताओं के मन में जिज्ञासा जागृत करने वाली ।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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