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________________ जैन कथा कोष ३७७ उधर वीरक मरकर सौधर्म देवलोक में 'किल्विषिक' देव हुआ। अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव को देखा तो 'सुमुख' और 'वनमाला' को युगल रूप में पाया। 'वीरक' ने सोचा—इनसे बदला तो अवश्य लेना है। यदि ये यहाँ मरेंगे तो देवरूप मे पैदा होंगे। अतः प्रतिशोध लेने के लिए उस युगल को भरतक्षेत्र के 'चम्पापुर' में ला बैठाया और 'चम्पापुर' का राजा-रानी बना दिया। आकाशवाणी से कहा—'इस युगल को मैं 'हरिवर्ष क्षेत्र' से लाया हूँ। ये सर्वथा राजा बनने योग्य हैं। इन्हें पशु-पक्षियों का मांस खूब खिलाना।' देव ने अपनी शक्ति से उस युगल के शरीर का प्रमाण भी कम कर दिया। उसका नाम यहाँ 'हरिराजा' रखा । यहाँ से मरकर नरक में गया। इसी 'हरिराजा' के नाम पर 'हरिवंश' चला। -स्थानांगवृत्ति १० २१६. हरिसेन चक्रवर्ती 'कपिलपुर नगर' के स्वामी 'महाहरि' की पटरानी का नाम था 'महिषी'। उसने चौदह स्वप्नों से सूचित एक महासौभाग्यशाली पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'हरिसेन' रखा गया। ___ युवावस्था में 'हरिसेन' राज्य-पद पर अवस्थित हुआ। चक्ररत्न उत्पन्न होने के बाद दिग्विजय की और चक्रवर्ती सम्राट् बना। अन्त में सभी ऋद्धि संपत्ति को ठुकराकर संयम लिया। केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया। ये दसवें चक्रवर्ती थे। . –त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र २२०. हस्तिपाल राजा पूर्व भारतीय अंचल में अवस्थित 'पाकापुरी' नगरी का स्वामी था 'हस्तिपाल'। राजा 'हस्तिपाल' भगवान् महावीर का अनन्य भक्त था। भगवान् महावीर ने 'हस्तिपाल' की विशेष प्रार्थना पर उसकी रथशाला में अपना चार्तुमास किया। यह प्रभु का अन्तिम चातुर्मास सिद्ध हुआ। इसी रथशाला में भगवान् महावीर ने अनशन किया। सोलह प्रकार के अनशन से कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में उसी रथशाला में निर्वाण प्राप्त किया। -समबायांग ५५
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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