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________________ जैन कथा कोष २७१ पिता सिद्धार्थ राजा निर्वाण तिथि ४२ वर्ष जन्म-तिथि चैत्र शुक्ला १३ कुल आयु ७२ वर्ष कुमार अवस्था ३० वर्ष चिह्न सिंह दीक्षा तिथि मार्गशीर्ष कृष्णा १० मगध देश के 'क्षत्रियकुंड' नगर के महाराज 'सिद्धार्थ' के यहाँ 'त्रिशला' के उदर से भगवान् महावीर का जन्म हुआ। उस दिन चैत सुदी तेरस थी। भगवान् 'महावीर' जब माता के गर्भ में आये तब से ही राज्य में धन.धान्य, मान.सम्मान सभी तरह से बढ़ता ही गया। इसलिए महाराज ने अपने पुत्र का नाम 'वर्धमान' रखा। चौदह स्वप्नों से सूचित पुत्र का जन्म हुआ। स्वप्न.पाठकों ने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि बालक वंशभास्कर, कुलदीपक, चक्रवर्ती या धर्मचक्रवर्ती होगा। ___'वर्धमान' जब गर्भ में थे तब एक बार उनके मन में विचार आया कि मेरे हिलने-डुलने से माता को कष्ट होता होगा, यह सोचकर उन्होंने हिलना-डुलना । बन्द कर दिया। गर्भ के न हिलने से माता यह सोचकर शोकाकुल हो उठी कि हो न हो मेरा गर्भ नष्ट हो गया है। यों विचारकर विलाप करने लगी। गीतगान बन्द हो गए। क्रन्दन का कारण जानकर प्रभु हिलने लगे। सारा परिवार पुनः पुलकित हो उठा। प्रभु ने गर्भ में ही सोचा--जब मेरे न हिलने मात्र से माता यों व्यथित हो उठी, तब मैं साधु बनूंगा तब तो माता को अत्यधिक व्यथा होगी। यों सोचकर संकल्प कर लिया कि 'माता-पिता के जीवित रहते मैं साधु नहीं बनूंगा।' आमलकी क्रीड़ा में परास्त होकर देव ने इनका नाम वीर दिया। वैसे ही मनुष्य, तिर्यंच और देवों द्वारा किये गये अनेक उपसर्ग सहन करने में वे सक्षम होंगे, इसलिए 'महावीर' कहलाये। युवावस्था में 'यशोमती' नाम की राजकुमारी से विवाह हुआ। एक पुत्री भी हुई जिसका नाम था 'प्रियदर्शना'| माता-पिता के दिवंगत होने के बाद तीस वर्ष की अवस्था में मगसिर बदी दसमी के दिन दो दिन के व्रत में प्रभु ने दीक्षा स्वीकार की। उसी दिन प्रभुं को मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति हुई। अब प्रभु का छद्मस्थ विहार होने लगा। छद्मस्थ विहार कहो या उपसर्गों का संचार कहो, स्थिति वैसी ही बनी। प्रभु के अनुकूल-प्रतिकूल अनेक प्रकार के उपसर्ग आये। कहा यहाँ तक गया है कि तेईस तीर्थंकरों के कर्मों का भार
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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