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________________ ३६० जैन कथा कोष तो डूबना था ही। मरकर सातवीं नरक में गया । अहं की अकड़ और लालसा की पकड़ व्यक्ति को कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है । जन्मस्थान पिता माता जन्मतिथि कुमार अवस्था राज्यकाल २०८. सुमतिनाथ भगवान् सारिणी अयोध्या मेघ मंगला -उत्तराध्ययन सूत्र, अ. १८ — त्रिषष्टि शलाकापुरुष, ६/४ वैशाख शुक्ला ८ १० लाख पूर्व २६ लाख पूर्व १२ पूर्वाग दीक्षा तिथि चारित्र पर्याय केवलज्ञान तिथि निर्वाण तिथि कुल आयु चिह्न वैशाख शुक्ला ६ १२ पूर्वांग कम १ लाख पूर्व चैत्र शुक्ला ११ चैत्र शुक्ला ६ ४० लाख पूर्व क्रौंच 'अयोध्या' नगरी के महाराज 'मेघ' की महारानी का नाम 'मंगला' था । 'मंगला' के उदर में जयंत नामक तीसरे अनुत्तर विमान से च्यवन करके एक पुण्यात्मा आयी, जो चौदह स्वप्न से संसूचित होने के कारण तीर्थंकर होंगे, ऐसा स्वप्न- पाठकों ने निर्णय दिया । वैशाख सुदी अष्टमी को प्रभु का जन्म हुआ । T प्रभु जब गर्भ में थे, तब महारानी ने एक बहुत पेचीदा गुत्थी सुलझाई थी। बनी थी कि नगर में किसी धनाढ्य सेठ के दो पत्नियां थीं। छोटी पत्नी के एक पुत्र था। बड़ी का भी उस पर पूरा प्यार था । सेठ दिवंगत हो गया । बाद में दोनों में पुत्र को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों ही उसे अपना-अपना बताने लगीं। परिवार के मुखियों द्वारा, पंचों द्वारा, यहाँ तक कि उस पुत्र के द्वारा भी यह पता नहीं लगाया जा सका कि इसकी असली माता कौन-सी है ? महाराज 'मेघ' के पास यह मामला पहुँचा, तब महारानी ने अपनी सूझ-बूझ से यह निर्णय दिया था कि इस बालक के दो टुकड़े करके दोनों को आधा-आधा हिस्सा दे दो। यह निर्णय सुनकर असली मां को बहुत दुःख हुआ । उसने गिड़गिड़ाते हुए रानी से कहा- ' - मैं झुठी हूँ । इसकी असली माँ तो वही है।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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