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जैन कथा कोष ३५१
मनःपर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी पूर्वधर
६१५० ६००० २०३०
साध्वी
४,३०,००० श्रावक
२,५७,००० श्राविका
४,६३,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ४
२०५. सुबाहुकुमार भगवान् ‘महावीर' अपने धर्म-परिवार सहित एक बार 'हस्तिशीर्ष' नगर में पधारे । वहाँ का युवराज 'सुबाहु' कुमार प्रभु के दर्शनार्थ आया। 'सुबाहु' कुमार के पिता महाराज 'अदीनशत्रु' तथा माता 'धारिणी' भी साथ थी। सब प्रभु का उपदेश सुन रहे थे।
भगवान् के पास बैठे हुए 'इन्द्रभूति' ने सविनय प्रभु से पूछा-'प्रभुवर ! यह 'सुबाहु' कुमार हम जैसे निस्पृह सन्तों को भी मोहक, प्रिय तथा सुहावना लगता है। ऐसे इसने पूर्वजन्म में कौन से सत्कर्म किये थे?' ।
प्रभु ने कहा—'गौतम' ! सुबाहु कुमार यहाँ जो पुष्पचूला आदि पाँच सौ रानियों के साथ सुखोपभोग कर रहा है, तुम्हें जो यों प्रिय लग रहा है, उसका कारण मात्र एक ही है—उसने पूर्वजन्म में पात्रदान बहुत ही चढ़ते हुए भावों से दिया था। इसका पूर्वभव सुनो
_ 'हस्तिनापुर' में सुबाहु कुमार का जीव 'सुमुख' गाथापति था। 'सुमुख' गाथापति के घर पर एक बार 'धर्मघोष' स्थविर के शिष्य 'सुदत्त मुनि' भिक्षा के लिए पहुँचे। 'सुमुख' ने अपने घर में मुनि को देखकर बहुत प्रसन्नता अनुभव की। उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा। अपने भाग्य की सराहना करते हुए मुनिवर का साध्वोचित सत्कार किया। विपुल रूप में चारों ही प्रकार का आहार मुनिराज को दिया। पात्रदान के सुयोग से 'सुमुख' के घर में साढ़े बारह कोटि सोनैयों की वर्षा हुई। पाँच दिव्य प्रकट हुए। पात्रदान की महिमा चारों ओर फैली। 'सुमुख' कों दान का अप्रतिम लाभ यह मिला कि उसने संसार को परिमित कर लिया। वहाँ से काल करके यह 'सुबाहु कुमार' हुआ है।
इन्द्रभूति आदि सारी परिषद् ने 'सुबाहु कुमार' का पूर्वभव सुना । पूर्वभव की कथा से 'सुबाहु कुमार' को भी विरक्ति जागी। सारा परिवार, विपुल वैभव, अतुल ऐश्वर्य—सब कुछ ठुकसकर प्रभु से संयम स्वीकार किया। उत्कट संयम