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जैन कथा कोष
की सेना को हराया जा रहा है। उसने श्रेयांसकुमार के सहयोग से विजय प्राप्त कर ली । '
प्रात:काल जागकर श्रेयांसकुमार महल के झरोखे में इसी चिन्तन में बैठा था— आज मैंने कैसा स्वप्न देखा? इतने में उसने प्रभु को आते देखा । तब श्रेयांसकुमार ने सोचा- 'ऐसा रूप मैंने कहीं देखा है ।' यों चिन्तन करते-करते उसे जातिस्मरणज्ञान हो आया। उस ज्ञान से भिक्षा-विधि का परिज्ञान करके प्रभु के पास आया और अपने घर चलने की प्रार्थना की। अपने घर लाकर, शुद्ध इक्षु रस के घट जो वहां रखे थे, उसका प्रभु को दान दिया। भगवान् ने अपने कर को पात्र बनाकर बारह महीनों के व्रत को खोला।
चारों ओर श्रेयांसकुमार का सुयश फैला। सभी के स्वप्न साकार हो उठे। वह इस युग का पहला दातार कहलाया । वह दिन वैशाख सुदी तीज का था इसलिए वह अक्षय तृतीया का पर्व कहलाया । आज उसी तप के उपलक्ष में बहुत से लोग वर्षी तप किया करते हैं।
जन्मस्थान पिता
माता
जन्मतिथि
कुमार अवस्था
राज्यकाल
१६२. श्रेयांसनाथ भगवान्
सारिणी
सिंहपुर
विष्णु विष्णुदेवी
फाल्गुन कृष्णा १२
२१ लाख वर्ष
४२ लाख वर्ष
दीक्षातिथि
केवलज्ञान
चारित्र पर्याय
कुल आयु निर्वाण तिथि
चिह्न
— कल्पसूत्र
फाल्गुन कृष्णा १३
माघ कृष्णा ३०
२१ लाख वर्ष
८४ लाख वर्ष
श्रावण कृष्णा ३
गेंडा
'सिंहपुर' के महाराज 'विष्णु' की पटरानी 'विष्णुदेवी' के उदर में प्रभु श्रेयांसनाथ बारहवें अच्युत स्वर्ग से च्यवन करके आये । फाल्गुन बदी १२ को प्रभु का जन्म हुआ। युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ प्रभु का पाणिग्रहण हुआ । वर्षीदान देकर एक हजार राजाओं के साथ भगवान् श्रेयांसनाथ ने फाल्गुन बदी १३ को दीक्षा स्वीकार की। प्रभु २१ लाख वर्ष तक कुमारावस्था में रहे । ४२ लाख वर्ष तक राज्य किया । ११ महीने छद्मअवस्था