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________________ ३३ १२ जैन कथा कोष 'भारद्वाज' ब्राह्मण और अनेक शास्त्रों के सिद्धहस्त विद्वान थे । ५०० शिष्यों के अध्यापक थे, फिर भी इनके मन में संदेह था— पाँच भूत हैं या नहीं? इन्द्रभूति की भांति ये भी अपने शिष्यों के साथ सोमिल के यज्ञ में अपापानगरी आए थे । यज्ञभूमि से ये भी इन्द्रभूति गौतम के समान भगवान् महावीर को शास्त्रार्थ में पराजित करने के उद्देश्य से उनके समवसरण में गए। लेकिन भगवान् महावीर ने ही इनकी सुगुप्त शंका का निराकरण कर दिया। फिर क्या था? अपनी ५१ वर्ष की आयु में सभी शिष्यों के साथ संयम स्वीकार किया और भगवान् के शिष्य बन गये। बारह वर्ष छद्मस्थ रहे । १८ वर्ष केवलीपर्याय का पालन करके ८० वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया । - आवश्यकचूर्णि १८१. शकट कुमार 'साहंजनी' नगरी का महाराज 'महचंद' था। उसके प्रधान का नाम था 'सुषेण' । वहाँ एक गणिका थी, जिसका नाम था 'सुदर्शना' । नगर में एक साहूकार था, जिसका नाम था 'सुभद्र' और सेठानी का नाम था 'भद्रा'। उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम रखा गया 'शकट कुमार' । एक बार भगवान् महावीर जनपद में विहार करते हुए उसी साहंजनी नगरी में पधारे। गौतम भिक्षार्थ नगर में गये तो वहाँ एक विचित्र दृश्य देखा— अनेक हाथी, घोड़ों और मनुष्यों के समूह में एक स्त्री के पीछे एक पुरुष को बांध रखा था। दोनों के नाक-कान काटे हुए थे। उन्हें वधभूमि में ले जाया जा रहा था। वे दोनों स्त्री-पुरुष जोर-जोर से क्रन्दन कर रहे थे— 'हम अपने पापों के कारण मारे जा रहे हैं। कोई हमें बचाओ । हमारे पाप ही हमें खा रहे हैं ।' यह दृश्य देखकर लोग काँप रहे थे गौतम स्वामी भगवान् के पास आये । गौतम ने सारी बात कहकर प्रभु से पूछा- 'प्रभु, ऐसा उन्होंने पूर्वजन्म में कौन-सा पाप किया था, जिससे यों मारे जा रहे हैं?" भगवान् ने कहा—‘गौतम ! 'छगलपुर' नगर में एक 'सिंहगिरि' नाम का राजा था। वहाँ एक छणिक' नाम का कसाई था । वह कसाई धनवान तो था, पर था क्रूरकर्मी, पापात्मा और दुराचारी । अपने बाड़े में बकरे-बकरियाँ, गौएं, बैल, भैंसें, पांडे, हरिण, मोर, मारेनियां आदि अनेक जानवरों को लाखों की
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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