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३१० जैन कथा कोष भी नहीं मालूम था कि वे विवाहित होते हुए भी अखण्ड ब्रह्मचारी हैं। इसी तरह रहते उन्हें कई वर्ष बीत गये। ___ अंगदेश की चम्पानगरी में द्वादशव्रती श्रावक जिनदास रहता था। साधुसाध्वियों की सेवा करने में उसे बहुत आनन्द आता था। मुनि-जनों में उसकी प्रगाढ़ भक्ति थी। उसने मन-ही-मन एक संकल्प किया कि मैं चौरासी हजार श्रमणों को अपने हाथ से आहार दूं। __एक बार जब चम्पानगरी में केवली मुनि विमल पधारे तो वह भी उनकी देशना सुनने गया। देशना के अनन्तर अपने मन की बात बताकर विनम्रता से पूछा-भंते ! मेरी यह भावना कैसे पूरी होगी?
केवली मुनि विमल ने कहा-चौरासी हजार श्रमणों का एकत्र होना तो असंभव-सा ही है। पर जितनी उससे प्रसन्नता होगी उतनी ही प्रसन्नता की बात तुझे बताता हूँ। ऐसे दो व्यक्तियों से तेरा मिलन होगा जो विवाहित जीवन व्यतीत करते हुए एक शय्या पर रहकर भी अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं।
जब जिनदास ने ऐसे युगल का नाम पूछा तो केवली मुनि ने विजय-विजया का परिचय बता दिया।
जिनदास यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह परिवार सहित कच्छ देश की ओर चल दिया। श्रेष्ठी अर्हदास के घर पहुंचा और विजय-विजया की स्तुति करने लगा। लोगों को इस स्तुति-पाठ से बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने जब इस प्रशंसा का कारण जानना चाहा तो श्रेष्ठी जिनदास ने बताया-ये दोनों विवाहित होकर भी अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं। इनका माहात्म्य चौरासी हजार श्रमणों के समान ही आनन्दप्रद है। __ अपना रहस्य खुलने पर पूर्व निश्चय के अनुसार विजय-विजया दोनों ने संयम स्वीकार कर लिया। उन्होंने कठोर तप:साधना की और अन्त में मुक्त हुए।
१७६. विमलनाथ भगवान्
जन्म स्थान पिता
सारिणी कम्पिलपुर कुमार अवस्था कृतवर्मा राज्यकाल
१५ लाख वर्ष ३० लाख वर्ष