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जैन कथा कोष
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...१५६. महाशतक 'महाशतक' राजगृह में रहने वाला एक समृद्ध गाथापति था। उसके पास २४ कोटि स्वर्ण-मुद्राएँ थीं। उसने अपनी सम्पत्ति को तीन भागों में बाँट रखा थाआठ कोटि मुद्राएं व्यापार में, आठ कोटि मुद्राएं घर सामग्री में तथा आठ कोटि निधि रूप में जमीन में सुरक्षित रहती थीं। दस-दस हजार गायों के आठ गोकुल थे। 'रेवती' प्रमुख सहित उसके तेरह पत्नियाँ थीं। 'रेवती' एक धनाढ्य पिता की पुत्री थी। दहेज में वह आठ कोटि स्वर्ण मुद्राएं तथा आठ गोकुल पीहर से लायी थी। 'महाशतक' की अन्य बारह पत्नियाँ भी अपने पिता के यहाँ से एक-एक कोटि सोनैये तथा एक-एक गोकुल लेकर आयी थीं।
इतना धनाढ्य होते हुए भी 'महाशतक' अभिमान से बहुत दूर था । अपना सीधा-सादा जीवन बिता रहा था। भगवान् 'महावीर' के पास श्रावकधर्म स्वीकार करने के बाद तो वह और भी साधनापूर्वक जीवन जीने लगा। ___ 'रेवती' ने मन में विचार किया कि मेरे पति का सुख बाँटने वाली ये बारह सौत हैं। ये जब तक हैं, तब तक पति का प्रेम मुझे अधूरा ही मिलेगा, पूरा कैसे मिल सकेगा। इसलिए इन्हें मार दूं तो पतिदेव का अविकल सुख मुझे मिल जाएगा। यह सोचकर उसने उन सबका सफाया करने का षड्यंत्र रचा। बहुत ही गुप्त तरीके से छह पत्नियों को विष-प्रयोग से तथा छः को शस्त्रप्रयोग से मार दिया। यह सारा काम इतनी चालाकी के साथ किया कि इस षड्यंत्र का श्रावक महाशतक को पता नहीं लग सका। अब 'रेवती' बिल्कुल ही स्वच्छन्द हो गई। उसे मनचाहा धन मिल गया। वह अपनी सपत्नियों के धन की भी स्वामिनी हो गयी।
स्वच्छन्द बनकर वह मद्य और मांस भी भरपेट खाने लगी। मद्य-मांस के अत्यधिक तामसी भोजन के सेवन से उसकी प्रकृति में क्रूरता और कामुकता का आना स्वाभाविक था।
उन्हीं दिनों महाराज श्रेणिक' ने 'राजगृही' नगरी में यह घोषणा कराई कि कोई भी व्यक्ति कहीं भी मेरे नगर में पंचेन्द्रिय जीव का वध न करे । घोषणा के कारण नगर का प्राणी-वध रुक गया। ___ यह घोषणा 'रेवती' के लिए मुसीबत बन गई। अब वह क्या करे? मांस बिना उससे रहा नहीं जाता था। एक-दो दिन तो उसने ऐसे ही निकाल लिये।