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________________ जैन कथा कोष २३६ रूप नहीं रह सका। वह भी बिगड़ गया था। इससे स्पष्ट जाना जा सकता है कि शरीर और जीव एक ही हैं।' केशी-राजन् एक मजबूत कोठरी में जिसमें कि किसी भी ओर कुछ भी निकलने की गुंजाइश न हो, उसके अन्दर बैठकर कोई भेरी बजाता है तो उसका शब्द बाहर सुनाई देगा या नहीं देगा?' प्रदेशी—'शब्द तो सुनाई देगा।' केशी—'जैसे कोठरी के अन्दर से शब्द बाहर आ जाता है, उसी तरह जीव भी कुम्भी से निकल सकता है। देख, शब्द तो मूर्त है और जीव अमूर्त है, अर्थात् शब्द से भी अत्यन्त सूक्ष्म जीव है।' प्रदेशी—'भगवन् ! एक प्रमाण और है। एकदा एकः कुम्भी में चोर को बन्द किया गया। कुछ दिनों बाद जब देखा, तब वह तो मरा हुआ था। अन्दर कीड़े भी बहुत पड़ गये थे। मैं तो यह समझता हूँ कि ये सभी कीड़े एक ही शरीर के अंश हैं। चोर के शरीर से ही वे बन गये। उनके जीव कहीं बाहर से नहीं आये।' केशी-'जैसे लोहे के गोले में कहीं भी छिद्र नहीं होता, फिर भी उसे गर्म करने पर अग्नि के जीव उसमें प्रविष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार जीव भी बिना छिद्र के स्थान में घुस जाता है। वह तो अग्नि से भी बहुत सूक्ष्म है।' प्रदेशी-'भगवन् ! एक तरुण धनुर्धर एक साथ पाँच बाण फेंक सकता है, पर वैसे एक वृद्ध नहीं। इससे सिद्ध होता है जीव और शरीर एक है। शरीर-वृद्धि के साथ जीव की कुशलता, जो कि उसका धर्म है, बढ़ती जाती __ केशी-'राजन् ! नया धनुष और नयी डोरी लेकर वह पुरुप एक साथ पाँच बाण फेंक सकता है, पर पुराने धनुष और पुरानी डोरी से नहीं। इसी प्रकार बालक, वृद्ध और तरुण में होने वाला अन्तर जीव के हृस्वत्व-दीर्घत्व के कारण नहीं, अपितु तत्सम्बन्धी उपकरणों के कारण होता है। प्रदेशी-'भगवन ! तरुण पुरुष की तरह वृद्ध पुरुष भार उठाने में समर्थ नहीं होता, इसका कारण क्या है?' __केशी- राजन ! ठीक है, इतना बड़ा भार वह भी उठा सकता है, पर. युवक के पास भी यदि साधनों की कमी हो तो, वह भी अधिक भार उठाने में असमर्थ होगा। इसी प्रकार वृद्ध पुरुष भी बाह्य शारीरिक साधनों की अल्पता
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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