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________________ २३२ जैन कथा कोष ___ साध्वी पुष्पवती आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग में देवी बनी। उसने स्वर्ग और नरक के दृश्य पुष्पचूला को स्वप्न में दिखाये। इन स्वप्नों के कारण पुष्पचूला का जी उचटा-उचटा रहने लगा। उसने उन स्वप्नों के बारे में आचार्य अन्निकापुत्र को बताकर पूछा कि ये कैसे दृश्य हैं? आचार्य अन्निकापुत्र ने स्पष्ट बता दिया कि ये वीभता और भयावने दृश्य नरक के हैं तथा कमनीय सुख-भोगों के दृश्य स्वर्ग के हैं। यह जानकर पुष्पचूला संसार से विरक्त हो गयी और उसने राजा पुष्पचूल को समझा-बुझाकर आचार्य अन्निकापुत्र के पास संयम ग्रहण कर लिया। महासती 'पुष्पचूला' वहीं स्थिरवासिनी वृद्ध सतियों की परिचर्या में रही। अतः पुष्पचूल को भी सती के दर्शनों का लाभ मिलता रहा। अन्त में 'पुष्पचूला' ने मोक्ष प्राप्त किया। -आवश्यक नियुक्ति, १२६४ १३५. प्रद्युम्नकुमार देवलोक के समान 'द्वारिका' नगरी के स्वामी श्रीकृष्ण' के आठ पटरानियाँ थीं; जिनमें 'रुक्मिणी', 'सत्यभामा', 'जाम्बवंती' आदि प्रमुख थीं। ___एक दिन 'अतिमुक्तक' मुनि भिक्षा लेने के लिए 'रुक्मिणी' के महलों में आये। संयोगवश 'सत्यभामा' भी वहीं पर थी। भिक्षा देकर 'रुक्मिणी' ने अतिमुक्तक मुनि से पूछा—'मुनिवर ! मेरे पुत्र होगा या नहीं?' मुनि ने उपयोग लगाकर बताया—'तू क्यों चिन्ता करती है? तेरे 'श्रीकृष्ण' के समान ही पराक्रमी पुत्र होगा।' यों कहकर मुनिवर चले गये। पीछे से सत्यभामा और रुक्मिणी में अकारण ही विवाद छिड़ गया। सत्यभामा ने रुक्मिणी से कहा'पुत्र-प्राप्ति का वर मुनि ने मुझे दिया है।' रुक्मिणी ने कहा—'मेरे प्रश्न पर मुनिवर मुझे वर दे गये हैं।' सत्यभामा ने उसकी बात को काटते हुए कहा'माना कि प्रश्न तूने किया था, पर उत्तर देते समय मुनिवर मेरी ओर देख रहे थे, इसलिए मुझे वर दे गये हैं।' सत्यभामा विवाद करती हुई रुक्मिणी को लेकर श्रीकृष्ण के पास आयी। अपनी बात की पुष्टि में यहाँ तक शर्त लगा दीजो भी हो, मेरी शर्त यह है कि जिसके पहले पुत्र हो, उसके विवाह में दूसरी को अपने सिर के केश देने होंगे। इस शर्त को रुक्मिणी ने भी मंजूर कर लिया। यों शर्त लगा दोनों चली गईं।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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