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जैन कथा कोष १७५ मर गया। त्रिपृष्ठ के यह निकाचित कर्म का बन्ध हुआ।
भगवान् महावीर के भव में वह शय्यापालक एक ग्वाला बना। महावीर के कानों में कीलें डालकर दारुण वेदना दी और अपने पूर्वजन्म के वैर का बदला लिया।
त्रिपृष्ठ वासुदेव तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के समय में चौरासी लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण करके सातवीं नरक में उत्पन्न हुआ।
–त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ४
-आवश्यक नियुक्ति -विशेषावश्यक भाष्य
—आवश्यक चूर्णि ६८. त्रिशलादेवी त्रिशलादेवी क्षत्रियकुंड नगर के महाराज सिद्धार्थ की पटरानी थी। वह वैशाली गणतंत्र के महाराज 'चेटक' की बहन थी। नन्दीवर्धन और वर्द्धमान उनके दो पुत्र थे तथा एक पुत्री थी। पार्श्वनाथ भगवान् के शासन में ये श्रावकधर्म का पालन कर रही थी। भगवान् महावीर की अट्ठाईस वर्ष की अवस्था में दिवंगत होकर वह दसवें स्वर्ग में गईं।
—आवश्यक चूर्णि
६६. थावर्चा पुत्र 'थावर्चा पुत्र' 'द्वारिका' नगरी में रहने वाली 'थावर्चा' सेठानी का पुत्र था। युवावस्था में बत्तीस स्त्रियों के साथ कुमार का विवाह किया गया। मौज-शौक से वह जीवन यापन कर रहा था।
महलों में बैठे उसे एक दिन पास वाले घर में मधुर संगीत सुनाई दिया। कर्णप्रिय उन गीतों को सुनकर थावर्चाकुमार हर्षविभोर हो उठा। माँ के पास आकर पूछा-माँ ! ये मधुर संगीत क्यों और किसलिए गाए जा रहे हैं?
माँ ने कहा—अपने पड़ोसी के पुत्र पैदा हुआ है। उसी खुशी में ये मधुर निनाद हो रहा है।
कुमार वापस अपने महलों मे जाने लगा। इतने में कर्णकटु रुदन की ध्वनि सुनाई दी। उसका कारण पूछने पर माँ ने बताया—जो लड़का अभी उत्पन्न