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________________ १७२ जैन कथा कोष ___ अब दूसरे स्वर्ग के देवों ने अपने स्वामी के पूर्वजन्म के शव की यों अवमानना देखी तो उनका कुपित होना सहज ही था। अपने स्वामी को यह सम्पूर्ण घटना बताई। ईशानेन्द्र भी कुपित हो उठा। शय्या में लेटे-लेटे ही क्रूर दृष्टि से बलिचंचा नगरी को घूरकर देखने लगा। फिर क्या था, सारी नगरी अंगारों की तरह सुलगने लगी और सभी झुलसने लगे। सभी देव-देवियाँ भयभीत होकर काँपने लगे। ईशानेन्द्र के क्रोध को शान्त करने की प्रार्थना करने लगे। अपने अकृत्य पर क्षमा चाही और भविष्य में ऐसा कार्य न करने के लिए वचनबद्ध हो गये। ईशानेन्द्र ने अपनी तेजोलेश्या खींच ली, तब से बलिचंचा नगरी के देव ईशानेन्द्र के अधीन रहने लगे और उसकी आज्ञा का पालन करने लगे। -भगवती श. ३/१ ६६. तेतली-पुत्र 'तेतली-पुत्र' 'तेतलीपुर' नगर के महाराज 'कनकरथ' का महाबद्धिशाली प्रधान था। एक दिन वह अनेक सेवकों के साथ घोड़े पर घूमने गया। रास्ते में एक समुन्नत महल के ऊपर बैठी रूप-लावण्यवती कन्या को देखा। प्रधान का मन उसे पाने को ललचा उठा। खोज करने पर पता लगा कि यह 'कलाद' नामक स्वर्णकार की पत्नी 'भद्रा' की पुत्री है और इसका नाम 'पोट्टिला' है। प्रधान ने उसके साथ पाणिग्रहण करने की इच्छा प्रकट की। स्वर्णकार ने अपने सम्मान को बढ़ते देखकर अपनी पुत्री 'पोट्टिला' का विवाह प्रधान के साथ कर दिया। प्रधान उसके साथ सानन्द रहने लगा। राजा 'कनकरथ' में अन्य गुणों के होते हुए भी दो दुर्गुण विशेष थे। एक तो वह कामुक अधिक था। महारानियों के साथ अन्त:पुर में ही अधिक रहता और दूसरे उसको राज्यलिप्सा अधिक थी। वह नहीं चाहता था कि उसका कोई योग्य उत्तराधिकारी उत्पन्न हो जाये, जिसे राज्य देना पड़े। इसी कारण किसी भी रानी के पुत्र होता तो वह उसे अच्छा नहीं लगता। उत्पन्न होने वाले पुत्र को वह अंगहीन कर देता था, जिससे आगे जाकर वह राज्यपद के योग्य न रहे। फलस्वरूप नाक, कान, होंठ, पैर का अंगूठा, हाथ की अंगुली आदि किसी के कुछ, किसी के कुछ अंग काट दिये जाते। एक बार उसकी रानी पद्मावती गर्भवती हुई। रानी ने सोचा, राजा तो मेरे
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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