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जैन कथा कोष १
१. अकम्पित गणधर 'अकम्पित' मुनि भगवान् महावीर के आठवें गणधर थे। ये 'विमलापुर' के रहने वाले ब्राह्मण जाति के थे। इनके पिता का नाम 'देव' तथा माता का नाम 'जयन्ती' था। ये अनेक विद्याओं में निष्णात थे। एक बार ये इन्द्रभूमि के साथ 'अपापा नगरी' में 'सोमिल' ब्राह्मण के यहाँ यज्ञ करने गये । 'नरक है या नहीं' इनके मन में यह सुगुप्त शंका थी। इस शंका का निवारण भगवान् ने किया; क्योंकि उनका समवसरण भी अपापा के बाह्य भाग में था। शंका मिट जाने के उपरान्त ये भगवान् महावीर के पास अपने ३०० शिष्यों सहित दीक्षित हुए। ये ४६ वर्ष की प्रौढ़ावस्था में संयमी बने । ५८वें वर्ष में इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई तथा ७८वें वर्ष में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
—आवश्यकचूर्णि
२. अग्निभूति गणधर 'अग्निभूति' भगवान् महावीर के दूसरे गणधर थे। ये 'गोबर' गाँव के निवासी 'वसुभूति' विप्र के आत्मज और माता पृथ्वी के अंगजात थे। वैसे ये इन्द्रभूति के छोटे भाई थे। उन्हीं के साथ सोमिल ब्राह्मण के यहाँ यज्ञ करने अपापा नगरी गये । 'कर्म है या नहीं' इस शंका का समाधान भगवान् महावीर से पाकर अपने ५०० छात्रों सहित संयमी बने। उस समय इनकी आयु ४७ वर्ष की थी। ५६ वर्ष की आयु में इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और ७४ वर्ष की आयु में एकमासिक अनशनपूर्वक वैभारगिरि पर इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
-आवश्यकचूर्णि
३. अगड़दत्त मुनि अवन्ती जनपद में 'उज्जयिनी' नाम की समृद्ध नगरी थी। वहाँ राजा 'जितशत्रु' राज्य करता था। उसके सारथी का नाम 'अमोघरथ' था। अमोघरथ की पत्नी का नाम 'यशोमती' और उसके पुत्र का नाम 'अगड़दत्त' था।