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________________ जैन कथा कोष १६१ मात्र से कोई तापस नहीं होता है। वास्तव में समता से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि तथा तप से तपस्वी होता—ऐसा आत्मद्रष्टाओं का प्रतिपादन है। 'जयघोष' मुनि के प्रत्युत्तर से 'विजयघोष' परम प्रसन्न हुआ और विम्रतापूर्वक जयघोष मुनि से आहार की प्रार्थना की। . ___ मुनि ने कहा—मुझे आहार की ऐसी कोई विशेष आवश्यकता नहीं है। मैं तो चाहता हूँ कि तुम भी यही मार्ग स्वीकार करो। देखो, विषयासक्त व्यक्ति संसार में परिभ्रमण करता है और विषयों से विरक्त कभी कर्म-रजों से लिप्त नहीं होता है। तुमने देखा होगा मिट्टी के सूखे गोले को यदि दीवार पर फेंकते हैं, वह वहाँ नहीं चिपकता, नीचे गिर जाता है। वस्तुतः आसक्ति मात्र ही बन्धन का कारण है। अतः उससे विरक्त बनो। ___'जयघोष' मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर विजयघोष ब्राह्मण ने मुनित्व स्वीकार कर लिया। दोनों ही मुनि अपनी उत्कृष्ट तप संयम की साधना से सकल कर्मों का क्षय करके मोक्ष गये। -उत्तराध्ययन, अध्ययन २५ . ८७. जय चक्रवर्ती इक्कीसवें तीर्थंकर श्री 'नेमिनाथ' के शासनकाल में ग्यारहवाँ चक्रवर्ती हुआ, जिसका नाम था 'जय' | चक्रवर्ती जय राजगृही के महाराज विजय के पुत्र थे। इनकी माता का नाम 'विप्रा' था। चौदह स्वप्नों से सूचित पुत्र होने से चक्रवर्ती होगा, ऐसा सबका अनुमान था। पिता के बाद ये राजगद्दी पर बैठे। जब आयुधशाला में चक्र उत्पन्न हो गया, तब छः खण्डों पर इन्होंने अपना आधिपत्य जमाया। अन्त में तीन हजार वर्ष का सर्वायु भोगकर केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में विराजमान हुए। –त्रिोष्ट शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ७ ८८. जयन्ती विका 'जयन्ती' श्रमणोपासिका ‘कौशाम्बी' नगरी के महाराज 'शतानीक' की बहन तथा महाराज 'उदयन' की बुआ थी। वह भगवान् महावीर के साधुओं की
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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