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________________ जैन कथा कोष १४६ सब उसे पीटने लगे। अपनी यह दुर्दशा देखी तो उसके राज्य का लोभ कपूर की तरह काफूर हो गया। बिसूर-बिसूरकर रोता हुआ बोला—'मुझे मत मारिये, श्लोकपूर्ति मैंने नहीं की। नगर के बाहर बैठे मुनि ने श्लोक की पूर्ति की है, मैं उसी पंक्ति को लेकर यहाँ आया हूँ।' ___ राजा को जब होश आया तब मुनि द्वारा रचित यह पद्य है, इस प्रकार सुनकर स्वयं मुनि के चरणों में उपस्थित हुआ। उसके रोम-रोम नाच उठे। पदवन्दन करके बोला—'मुनिवर ! हम दोनों पाँच जन्मों से साथ-साथ उत्पन्न होते आ रहे थे। पहले जन्म में हम दोनों दास थे, दूसरे जन्म में हम मृग थे, तीसरे जन्म में हम हंस थे, चौथे जन्म में हम चाण्डाल-पुत्र थे तथा पाँचवें जन्म में हम दोनों देव बने थे, परन्तु हमारा छठा जन्म अलग-अलग क्यों हुआ? हम दोनों बिछुड़ कैसे गये? इसका क्या कारण है?' चित्त-ब्रह्मदत्त ! 'सनतकुमार' चक्रवर्ती की महारानी 'सुनन्दा' को देखकर तूने निदान कर लिया था, उसी के परिणामस्वरूप हम दोनों एकदूसरे से बिछुड गये—कृतकर्म विफल नहीं होते। ___ ब्रह्मदत्त—मैंने पूर्वजन्म में चारित्र का पालन किया था उसका शुभ फल प्रत्यक्ष भोग रहा हूँ। पर चारित्र का पालन तो आपने भी किया था। आप पिछले जन्म में भी भिक्षुक थे और इस जन्म में भी भिक्षुक ही रहे। आपको उस शुभ अनुष्ठान का फल क्यों नहीं मिला? चित्त—ब्रह्मदत्त ! किये हुए कर्मों का फल तो अवश्य मिलता है। तू यह मत समझ कि तू सुखी है और मैं दुःखी हूँ। मेरे पास ऋद्धि की कमी नहीं थी, परन्तु ये पुद्गलजन्य सभी सुख नाशवान हैं। ये किंपाकफल की तरह दीखने में सुहावने लगते हुए भी परिणाम में बहुत दुःखप्रद हैं। अतः मोह का बन्धन तोड़कर जिन धर्म में मन लगाकर आत्मोद्धार कर। ये जितने भी गीत-गान हैं, विलाप-तुल्य हैं। नाच-गान विडम्बना मात्र हैं। सभी आभूषण भार-रूप हैं। सभी काम दुःखप्रद हैं। ब्रह्मदत्त—जो कुछ आपने कहा वह मैं भी जानता हूँ, परन्तु मेरे जैसों के लिए विरक्त होना सहज नहीं लगता। जैसे दलदल में फँसा हाथी दूर से सूखी धरती को देखता है और दलदल से निकलकर सूखी धरती पर आना भी चाहता है, लेकिन कीचड़ में फंसे होने के कारण आ नहीं पाता, वैसे ही सब कुछ जानते हुए भी मैं श्रमणधर्म का अनुसरण करने में अपने आपको
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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