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________________ जैन कथा कोष १४७ और सुगन्ध से मुनि विह्वल हो उठे और आँख खोलकर 'सुनन्दा' को देखा। संभूति मुनि अपने आपको भूल बैठे। तत्क्षण निदान की भाषा में बोल उठे "मेरे तप और संयम का यदि कुछ फल हो तो मैं ऐसा स्त्री-रत्न और ऐसा ही वैभव प्राप्त करूँ।" चक्रवर्ती अपने स्थान पर आकर नमुचि पर बहुत कुपित हुआ और उसे अपने राज्य से निष्कासित कर दिया। ___ 'चित्त' और 'संभूति' मुनि प्रथम स्वर्ग में उत्पन्न हुए। 'चित्त' मुनि का जीव वहाँ से च्यवकर 'पुरिमताल' नगर में एक धनाढ्य सेठ के यहाँ पैदा हुआ। बड़ा होकर साधु बना। संभूति मुनि का जीव 'कपिलपुर' नगर के राजा ब्रह्मभूति की रानी 'चूलनी' के गर्भ में आया। माता ने चौदह स्वप्न देखे । चौदह स्वप्नों से सूचित ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के रूप में पैदा हुआ। ___ ब्रह्मदत्त अभी अवस्था से लघु ही था कि 'ब्रह्मभूति' राजा की मृत्यु हो गई। मरते समय कुमार की बाल्यावस्था देखकर राजा ने राज्य का सारा कार्यभार-संचालन का दायित्व अपने मित्र दीर्घराजा' को सौंप दिया था। दीर्घराजा का महारानी चूलना के साथ अनुचित सम्बध हो गया। कुमार 'ब्रह्मदत्त' को जब इसका पता लगा तब उसने कोयल और कौओं को एक पिंजड़े में बन्द करके रखा। अपने मित्र. के पूछे जाने पर 'चूलनी' को सुनाकर व्यंग्योक्ति में कहा—'कोई भी अनुचित सम्बन्ध करेगा, उसे मेरे राज्य में यही सजा मिलेगी, भले ही कोई पुरुष हो या पशु।' रानी मन-ही-मन समझ गई कि हो-न-हो इस अनुचित सम्बन्ध का पता इसे लग गया है। 'दीर्घ' से सांठ-गांठ करके कुमार को मारने का षड्यन्त्र रच लिया। नगर के बाहर एक लाक्षागृह में कुमार को रखकर जलाने की योजना बना डाली। पर मंत्री को पता लगने से उसने वहाँ पहले से ही सुरंग खुदवा रखी थी। जब महल जलाया गया तब कुमार को सकुशल वहाँ से निकाल लिया गया। कुमार प्रधान-पुत्र के साथ गुप्त रूप से वहाँ से चल पड़ा। अनेक राज्यों को जीतकर विशाल सेना के साथ 'दीर्घ' पर चढ़ आया। युद्ध में दीर्घ १. महाराज ब्रह्मभूति की चार राजाओं के साथ घनिष्ठ मित्रता थी—(१) काशी का शासक 'कटक', (२) राजपुर. का राजा 'कणेर: (3) कौशल देश का शासक 'दीर्घ', (४) चम्पा नगरी का राजा 'पुष्पचूल"।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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