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________________ जैन कथा कोष ६५ तप:साधना द्वारा उसने अपने समस्त कर्मों का क्षय किया और आयु पूर्ण होने पर मोक्ष प्राप्त किया । - पार्श्वनाथ चरित्र ५५. कूणिक राजा 'कूणिक' राजगृह के अधिपति महाराज ' श्रेणिक' का पुत्र था । ' श्रेणिक' की प्रथम रानी 'नन्दा' का पुत्र 'अभयकुमार' था जो बहुत ही विलक्षण तथा बुद्धिमान था। अभयकुमार महाराज श्रेणिक के राज्यकार्य संचालन में प्रमुख सलाहकार था। महाराज ने उसे प्रमुख मन्त्री का पद दे रखा था । वैशाली के महाराज चेटक (जो भगवान् महावीर के मामा थे) की सात पुत्रियाँ थीं । उनकी छठी पुत्री सुज्येष्ठा के रूप पर मुग्ध होकर श्रेणिक ने उसकी याचना की। 'चेटक' जैन धर्मावलम्बी के सिवा किसी को अपनी पुत्री देना नहीं चाहता था और उस समय श्रेणिक बौद्धधर्मी था, अतः राजा चेटक ने उसे अपनी कन्या देने से इन्कार कर दिया। इस पर श्रेणिक निराश हो उठा। अभयकुमार ने ही अपने बुद्धिबल से सारा काम बनाया । स्वयं व्यापारी बनकर वैशाली गया। राजमहल की दासियों से सम्पर्क साधकर सुज्येष्ठा को आकर्षित करने में सफल हो गया। सुज्येष्ठा जब राजगृह से भाग चलने के लिए तैयार हो गई, तब राजगृह से 'सुज्येष्ठा' के महलों तक 'अभय' ने एक सुरंग खुदवाकर तैयार करवा दी तथा सुज्येष्ठा को समय का संकेत दे दिया । समय पर 'सुज्येष्ठा' और उसकी छोटी बहन 'चेलणा' दोनों ही भागने की तैयारी करके सुरंग द्वार पर आ डटीं । इतने में 'सुज्येष्टा' को याद आया कि वह अपने आभूषणों का डिब्बा भूल आयी है । वह आभूषणों का डिब्बा लाने गई। इधर महाराज 'श्रेणिक' वहाँ पहुँच गये और 'चेलणा' उनके साथ चली गई । 'स् 'येष्ठा' जब आभूषणों का डिब्बा लेकर आयी तो देखा 'चेलणा' वहाँ नहीं है। तब समझी, हो न हो मेरे साथ धोखा हुआ है। 'सुज्येष्ठा' ने शोर मचाया पर फिर क्या बनना था, 'चेलणा' महाराज श्रेणिक के महलों में पहुँच गई और उनकी पटरानी बन गई। उधर 'सुज्येष्ठा' साध्वी बन गई। ‘चेलणा' के प्रयत्न तथा अनाथी मुनि के सम्पर्क से महाराज श्रेणिक जैन धर्मावलम्बी बन गये | महारानी 'चेलणा' गर्भवती हुई, तब उसे अपने पति राजा श्रेणिक के कलेजे का माँस खाने की मनोभावना ( दोहद) पैदा हुई, लेकिन यह
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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