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________________ जैन कथा कोष ६३ अब वह वेश्या कामसेनाके घर पहुंचा। वहाँ उसने देखा कि रूपवती वेश्या धन के लोभ में एक कोढ़ी से लिपट रही है। उसे वेश्या से घृणा हो गयी। वहाँ से चोरी करने का विचार छोड़ आगे चल दिया। कुलपुत्र महाबल राजमहल में पहुँचा | वहाँ सेंध लगाकर अन्दर पहुँचा | उसने बहुत से रत्न इकट्ठे करके बाँध लिये। राजा-रानी सुख से सो रहे थे। इतने में एक सर्प आया। सर्प ने रानी के हाथ पर दंश-प्रहार किया और चलता बना। महाबल ने सर्प का पीछा किया तो देखा कि महल से बाहर निकलते ही सर्प ने बैल का रूप धारण कर लिया। द्वारपाल बैल को खदेड़ने लगा तो उस बैल ने द्वारपाल को सींगों के प्रहार से मार दिया। ___ यह देख महाबल ने भी बैल की पूंछ पकड़ ली। बैल ने मानव-वाणी में जब पूंछ छोड़ने को कहा तो महाबल ने उसका परिचय और रानी तथा द्वारपाल को मारने का कारण जानना चाहा । बैल ने कहा—'मैं नागकुमार देव हूँ। रानी और द्वारपाल मेरे पूर्वजन्म के शत्रु हैं। इसलिए मैंने इनसे बदला चुकाया है।' महाबल ने अपनी मृत्यु के बारे में जिज्ञासा की तो उस देव ने बतायाइस राजमार्ग में जो वटवृक्ष है, उसकी शाखा पर लटकने से तेरी मृत्यु होगी। जब महाबल ने इस कथन की पुष्टि में प्रमाण माँगा तो देव ने कहा-'कल राजमहल के शिखर से गिरकर एक बढ़ई की मृत्यु हो जाए तो मेरी बात पर विश्वास कर लेना।' दूसरे दिन ही राजमहल के शिखर से गिरकर एक बढ़ई की मृत्यु हो गई। अब तो महाबल को अपनी मृत्यु का भी विश्वास हो गया। वह मृत्युभय से काँपने लगा। राजमार्ग का वह वटवृक्ष उसे साक्षात् यमदूत दिखाई देने लगा। वह नगर छोड़कर चल दिया और एक नदी के तट पर पहुँचा। वहाँ एक तापस का आश्रम था। उस तापस के पास रहकर उसने समझ लिया कि इस तरह मैं वटवृक्ष से भी दूर रहूंगा और तप से अन्त:करण की शुद्धि तो होगी ही। कई वर्ष बाद जब तापस मर गया तो वह आश्रम का स्वामी बन गया। इधर राजा मानमर्दन के यहाँ एक चोर ने चोरी की। वह रत्न-पेटिका लेकर भागा। सिपाहियों ने चोर का पीछा किया। जब चोर ने समझ लिया कि सिपाहियों की पकड़ से मैं नहीं बच सकता तो रत्न-पेटिका वह महाबल के पास रखकर भाग गया। तब तक महाबल तापस का ध्यान भी पूरा हो गया।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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