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आयुबन्धकभाव, लोकान्तिक देवों का स्वरूप, गुणस्थानादिक, सम्यक्त्वग्रहण के कारण, आगमन, अवधिज्ञान, देवों की संख्या, शक्ति और योनि आदि का वर्णन इक्कीस अन्तराधिकारों के द्वारा किया गया है। इस अधिकार में वैमानिक देवों का विस्तार से वर्णन किया है।
अधिकार के आरम्भ में भगवान अनन्तनाथ को और अन्त में भगवान धर्मनाथ को नमस्कार किया गया है।
9. सिद्धलोक अधिकार (गाथा 82) इस अधिकार में कुल 82 गाथाएँ हैं। सिद्धों का क्षेत्र, उनकी संख्या और सिद्धत्व के हेतु आदि बताए हैं । इस अधिकार की बहुत-सी गाथाएँ समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय में दिखाई देती हैं। अधिकार के प्रारम्भ में शान्तिनाथ भगवान को नमस्कार किया गया है और अन्त में श्री कुन्थुनाथ भगवान से महावीर भगवान तक सभी तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। फिर एक गाथा में सिद्ध और साधुसंघ के जयवन्त रहने की कामना की गयी है। पुनः एक गाथा में भरत क्षेत्र के वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। फिर पंचपरमेष्ठी को नमन किया है। अन्त में तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ का प्रमाण आठ हजार श्लोक बताया गया है। अनन्तर ग्रन्थकर्ता ने अपनी विनम्रता व्यक्त करते हुए कहा है कि "प्रवचनभक्ति से प्रेरित होकर मैंने मार्गप्रभावना के लिए इस श्रेष्ठ ग्रन्थ को लिखा है।"
इस प्रकार तीन लोक की रचना का विस्तृत वर्णन इस महाग्रन्थ तिलोयपण्णत्ती में है। वास्तव में तीन लोक की रचना का इतना सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन सरल भाषा में करना आचार्य यतिवृषभ के अद्भुत ज्ञान एवं बुद्धिकौशल का ही प्रभाव है। हम आचार्य के प्रति आभारी हैं, जिन्होंने इतने महान और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की, जिससे सम्पूर्ण विश्व के तीन लोकों का ज्ञान हमें प्राप्त हो सके।
94 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय