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________________ समुद्र है। यही क्रम अन्त तक है । इन द्वीप समुद्रों का विस्तार उत्तरोत्तर पूर्व की अपेक्षा दुगना-दुगना होता गया है। यहाँ ग्रन्थकार ने आदि और अन्त के सोलहसोलह द्वीप - समुद्रों के नाम भी दिए हैं। इस अधिकार में आठवें, ग्यारहवें और तेरहवें द्वीप का कुछ विशेष वर्णन किया गया है, अन्य द्वीपों में कोई विशेषता न होने से उनका वर्णन नहीं किया गया है। आठवें नन्दीश्वर द्वीप के वर्णन के बाद बताया गया है कि प्रतिवर्ष आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास में इस द्वीप के बावन जिनालयों की पूजा के लिए भवनवासी आदि चारों प्रकार के देव शुक्लपक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक रहकर बड़ी भक्ति करते हैं । कल्पवासी देव पूर्व दिशा में, भवनवासी देव दक्षिण दिशा में, व्यन्तर देव पश्चिम दिशा में और ज्योतिषी देव उत्तर दिशा में अभिषेकपूर्वक जल चन्दनादिक आठ द्रव्यों से पूजन- स्तुति करते हैं। इस पूजन महोत्सव के निमित्त सौधर्मादि इन्द्र अपने-अपने वाहनों पर आरूढ़ होकर हाथ में कुछ फूल-पुष्पादि लेकर वहाँ जाते हैं । बूद्वीप से आगे संख्यात द्वीप समूहों के पश्चात् एक दूसरा भी जम्बूद्वीप है। इसमें जो विजयादिक देवों की नगरियाँ स्थित हैं, उनका वहाँ विशेष वर्णन किया गया है। उसके बाद द्वीप- समुद्रों के विस्तार, क्षेत्रफल सूचीप्रमाण और आयाम में जो उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है उसका गणित-प्रक्रिया के द्वारा बहुत विस्तृत विवेचन किया गया है। पश्चात् तिर्यंच जीवों की संख्या, आयु, आयुबन्धक भाव, उनकी उत्पत्ति योग्य योनियाँ, सुख-दुख, गुणस्थान, सम्यक्त्व ग्रहण के कारण और गति - आगति आदि का कथन किया गया है। अन्त में पुष्पदन्त जिनेन्द्र को नमस्कार कर इस अधिकार को समाप्त किया गया है। 6. व्यन्तरलोक अधिकार (गाथा 103 ) कुल 103 गाथाओं के इस अधिकार में व्यन्तर देवों का निवास क्षेत्र, उनके भेद, चिह्न, कुलभेद, नाम, दक्षिण- - उत्तर के इन्द्र, आयु, आहार, उच्छ्वास, अवधिज्ञान, शक्ति, संख्या, जन्म-मरण, आयुबन्धकभाव, सम्यक्त्वग्रहण विधि और गुणस्थानादि विकल्पों का वर्णन किया गया है। इसमें कतिपय विशेष बातें ही उल्लिखित हुई हैं, शेष वर्णन तृतीय अधिकार में वर्णित भवनवासी देवों के समान है । प्रारम्भिक मंगलाचरण में शीतलनाथ जिनेन्द्र को और अन्त में श्रेयांस जिनेन्द्र को नमस्कार किया गया है। 92 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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