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________________ तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का नाम 'तिलोयपण्णत्ती' प्राकृत भाषा में है। इसे संस्कृत भाषा में 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति' कहते हैं। चूँकि यह ग्रन्थ तीनों लोकों का स्वरूप प्रकाशित करने में दीपक के समान है, इसलिए इसे त्रिलोकप्रज्ञप्ति कहते हैं। प्रज्ञप्ति का अर्थ है-अधिकार । इस ग्रन्थ में तीनों लोकों का ज्ञान करानेवाले अधिकार हैं, अतः इसे तिलोयपण्णती कहा जाता है। ग्रन्थकार का परिचय तिलोयपण्णत्ती जैसे महाग्रन्थ के रचनाकार प्रकांड विद्वान आचार्य यतिवृषभ हैं। आप अपने युग के यशस्वी आगमज्ञाता विद्वान थे। आपका समय सन् 176 के आसपास सिद्ध होता है। यतिवृषभ ने कषायपाहुड के चूर्णिसूत्रों की रचना संक्षिप्त शब्दावली में प्रस्तुत कर महान अर्थ को निबद्ध किया है। यदि आचार्य यतिवृषभ चूर्णिसूत्रों की रचना न करते तो सम्भव है कि कषायपाहुड' का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता। रचनाएँ : इनकी दो ही रचनाएँ उपलब्ध हैं• कषायपाहुड के चूर्णिसूत्र • तिलोयपण्णत्ती। चूर्णिसूत्रों के प्रथम रचयिता होने के कारण और तिलोयपण्णत्ती जैसे विशाल और महान ग्रन्थ की रचना करने के कारण यतिवृषभ का अत्यधिक महत्त्व है। तिलोयपण्णत्ती :: 87
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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