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सिद्धान्त ग्रन्थों के विशेष ज्ञाता थे और अपने उसी ज्ञान के आधार पर उन्होंने 'कसायपाहुड' नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
जयधवला के कर्ता दो आचार्य हैं- . 1. आचार्य वीरसेन स्वामी 2. आचार्य जिनसेन स्वामी
आचार्य वीरसेन स्वामी का जयधवला के लगभग बीस हजार (20,000) श्लोक-प्रमाण लिखने के बाद समाधिमरण हो गया था, अतः जयधवला को उनके सुयोग्य शिष्य आचार्य जिनसेन स्वामी ने पूरा किया था।
जयधवला का कुल परिमाण 60,000 श्लोक प्रमाण है। इसमें से लगभग 20,000 श्लोकप्रमाण टीका आचार्य वीरसेन स्वामी ने लिखी है और शेष लगभग 40,000 श्लोकप्रमाण टीका आचार्य जिनसेन स्वामी ने लिखी है।
1. आचार्य वीरसेन स्वामी : आचार्य वीरसेन स्वामी विक्रम की नौवीं शताब्दी में हुए अपने समय के एक अद्भुत विद्वान आचार्य थे। आपको 'प्रथम सिद्धान्तचक्रवर्ती' के नाम से जाना जाता था। उनके आगम-विषयक ज्ञान और बुद्धि चातुरी को देखकर विद्वान उन्हें श्रुतकेवली और विद्वानों में श्रेष्ठ कहते थे।
2. आचार्य जिनसेन स्वामी : आचार्य जिनसेन स्वामी आचार्य वीरसेन स्वामी के अन्तेवासी परम शिष्य थे। जैन-साहित्य में जिनसेन नाम के अनेक आचार्य हो चुके हैं, अतः इनको 'आचार्य जिनसेन द्वितीय' के नाम से पहचाना जाता है। आचार्य जिनसेन स्वामी विक्रम की नौवीं शताब्दी में हुए हैं। आचार्य जिनसेन स्वामी अखण्ड ब्रह्मचारी, परिपूर्ण संयमी और अनुपम विद्वान थे। ये प्रतिभा और कल्पना के अद्वितीय धनी हैं। यही कारण है कि इन्हें 'भगवत् जिनसेनाचार्य' कहा जाता है।
ग्रन्थ का महत्त्व
1. कषायपाहुड एक अत्यधिक प्राचीन और लोकप्रिय ग्रन्थ है। 2. साक्षात तीर्थंकर महावीर की वाणी के समान पूज्य प्रामाणिक और आगमग्रन्थ . माना जाता है। इसीलिए इसके रचनाकाल से ही इसका पठन-पाठन अत्यधिक
प्रचलित था। 3. 'कसायपाहुड' की रचना-शैली बड़ी ही सारगर्भित है। इसमें सोलह हजार __ श्लोकप्रमाण 'पेज्जदोसपाहुड' को केवल 233 गाथाओं में समेट लिया है। 4. यह आचार्य गुणधर स्वामी की अनुपम रचना है।
70 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय