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मंगल आशीर्वाद
"एदम्हि रदो णिच्चं, संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि । एदेण होहि तित्तो, होहिदि तुह उत्तमं सॉक्खं ॥"
- (आचार्य कुन्दकुन्द, समयसार, गाथा 206)
अर्थ- हे भव्य ! तू इस ज्ञान में सदा प्रीति कर इसी में तू सदा सन्तुष्ट रह, इससे ही तू तृप्त रह ज्ञान में रति सन्तुष्टि और तृप्ति से तुझे उत्तम सुख प्राप्त होगा।
प्रतिष्ठा में.
6.6.2017
जैन धर्म ज्ञानप्रधान है, अतः जैन धर्म के अनुयाथियों को ज्ञानाराधना पर बल देना चाहिए। साधु और श्रावक दोनों को ही स्वाध्याय आवश्यक बताया है। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित होने वाली कृति प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय देखकर बहुत अच्छा लगा। इसके माध्यम से सभी को सम्यक ज्ञान का लाभ हो -यही मेरी मंगल भावना है।
शुभाशी
914
- ( आचार्य विद्यानन्द मुनि)
श्रीमान् साहू अखिलेश जैन भारतीय ज्ञानपीठ
लोदी रोड,
नई दिल्ली-110003