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- गोम्मटसार
गोम्मटसार ग्रन्थ के दो भाग हैं-1. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 2. गोम्मटसार कर्मकाण्ड।
गोम्मटसार के कई संस्करण प्राप्त होते हैं। जिनमें से प्रमुख संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से सन् 1978 से 1981 में पहली बार चार वृहत् जिल्दों में (गोम्मटसार जीवकाण्ड भाग 1 और भाग 2, और गोम्मटसार कर्मकाण्ड भाग 1 और भाग 2) में प्रकाशित हुआ है। दूसरा संस्करण रायचन्द्र शास्त्रमाला बम्बई का है। तीसरा संस्करण देवकरण शास्त्रमाला का है।
ग्रन्थ के नाम का अर्थ नेमिचन्द्राचार्य ने अपने इस ग्रन्थ की रचना राजा चामुण्डराय के लिए की थी। राजा चामुण्डराय का दूसरा नाम गोम्मट था, इसलिए इस ग्रन्थ को गोम्मटसार की संज्ञा दी गयी है।
इसके पहले भाग में जीवस्थान का और दूसरे भाग में कर्मकाण्ड का वर्णन है, अतः दोनों भागों के नाम गोम्मटसार जीवकाण्ड और गोम्मटसार कर्मकाण्ड हैं।
ग्रन्थकार का परिचय गोम्मटसार ग्रन्थ की रचना आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने की है। इनका समय ई. सन् की दशम शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना जाता है।
सिद्धान्तचक्रवर्ती इनकी उपाधि है। सिद्धान्तग्रन्थों के अभ्यासी को सिद्धान्त चक्रवर्ती का पद प्राचीन समय से ही दिया जाता रहा है। निश्चयतः आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तग्रन्थों के अधिकारी विद्वान थे। यही कारण है कि उन्होंने धवला टीका का मन्थन कर गोम्मटसार और जयधवला टीका का मन्थन कर लब्धिसार ग्रन्थ की रचना की है।
54 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय