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________________ वैराग्य हो गया, वह संसार के स्वरूप का चिन्तन करने लगते हैं। उसी समय इन्द्र ने अवधिज्ञान से भगवान के वैराग्य भाव को जान लिया। तप कल्याणक भगवान के तप कल्याणक की पूजा करने के लिए लौकान्तिक देव ब्रह्मलोक से आए और अनेक स्तोत्रों से भगवान की स्तुति करने लगे । इन्द्रादिक देवों ने क्षीरसागर के जल से भगवान का महाभिषेक किया और आदरपूर्वक दिव्य आभूषण वस्त्र, मालाएँ और मलयागिरि चन्दन से भगवान का शृंगार किया। उसके बाद भगवान देवनिर्मित पालकी पर आरूढ़ होकर ( बैठकर) सिद्धार्थक वन में गये। वहाँ भगवान ने समस्त परिग्रह का त्याग कर पूर्वाभिमुख होकर सिद्ध भगवान को नमस्कार कर सिर के केश उखाड़कर फेंक दिए। इस प्रकार चैत्र कृष्ण नवमी के दिन भगवान ने दीक्षा ग्रहण की । इन्द्र ने भगवान के पवित्र केश रत्नमय पिटारे में रखकर क्षीर समुद्र में जाकर क्षेप दिए। भगवान के साथ चार हजार अन्य राजा भी दीक्षित हुए। परन्तु वे दीक्षा के रहस्य को नहीं समझते थे, अतः वे द्रव्यलिंग के ही धारक हुए । भगवान ऋषभदेव छह माह का योग लेकर शिलापट पर आसीन हो गये, उन्हें दीक्षा लेते ही मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हो गया। छह माह के बाद राजा श्रेयांस को पूर्वभव का स्मरण होने से आहारदान की विधि ज्ञात हो जाती है। जिससे शीघ्र ही राजा श्रेयांस ने राजा सोमप्रभ और रानी लक्ष्मीमती के साथ भगवान ऋषभदेव को आदरपूर्वक षड़गाहन कर ईख के प्रासुक रस का आहार दिया। उसी समय देवों पंचाश्चर्य किये। ज्ञान कल्याणक किसी दिन भगवान ऋषभदेव ने पुरिमताल नगर के समीप शकट नामक उद्यान में ध्यान की सिद्धि के लिए वटवृक्ष के नीचे विशाल शिला पर विराजमान होकर चित्त की एकाग्रता धारण की। लेश्याओं की उत्कृष्ट शुद्धि को धारण करते हुए भगवान ध्यान में लीन हो गये। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र में भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया । भगवान ऋषभदेव केवलज्ञानी होकर लोकालोक को देखनेवाले सर्वज्ञ हो गये । भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान उत्पन्न होते ही देवों द्वारा विशाल समवशरण की रचना की गयी। तीन मेखलाओं से सुशोभित पीठ के ऊपर गन्धकुटी के मध्य 26 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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