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ग्रन्थ के नाम का अर्थ
पुरानी बात को पुराण कहते हैं । जब यह बात महापुरुषों के विषय में कही जाती है, या महान आचार्यों द्वारा उपदेश के रूप में बताई जाती है तब वह महापुराण कहलाती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ 'महापुराण' जैन पुराणशास्त्रों में मुकुटमणिरूप है। इसमें 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण, 9 बलभद्र - इन 63 शलाकापुरुषों का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसका दूसरा नाम त्रिषष्टिलक्षण - महापुराणसंग्रह भी है। इसकी रचना आठवीं - नवीं शती में हुई थी ।
ग्रन्थकार का परिचय
महापुराण के दो खंड हैं, प्रथम आदिपुराण और द्वितीय उत्तरपुराण । आदिपुराण 47 पर्वों में पूर्ण हुआ है, जिसके 42 पर्व पूर्ण तथा 43वें पर्व के 3 श्लोक भगवज्जिनसेनाचार्य के द्वारा लिखित हैं और शेष 5 पर्व तथा उत्तरपुराण श्री जिनसेनाचार्य के प्रमुख शिष्य श्री गुणभद्राचार्य के द्वारा लिखित हैं।
श्री जिनसेनाचार्य : आचार्य जिनसेन (द्वितीय) प्रतिभा और कल्पना अद्वितीय धनी हैं । ये अपने युग के महान विद्वान और काव्यरचना में अत्यन्त विद्वान रहे हैं । यही कारण है कि इन्हें ' भगवत जिनसेनाचार्य' कहा जाता है । इनके गुरु का नाम वीरसेन था । इनका समय ई. 9वीं शती का माना जाता है।
आचार्य जिनसेन काव्य, व्याकरण, नाटक, दर्शन, अलंकार, आचार, कर्मसिद्धान्त आदि अनेकानेक विषयों के ज्ञाता थे । आपकी तीन रचनाएँ उपलब्ध होती हैं - पार्वाभ्युदय, आदिपुराण और जयधवला टीका। इसके अतिरिक्त एक 'वर्धमानचरित' की भी सूचना प्राप्त होती है, परन्तु वह कृति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है।
श्री गुणभद्राचार्य : गुणभद्राचार्य जिनसेन (द्वितीय) के शिष्य थे। इनका समय 820 ई. 9वीं शती का अन्तिम चरण माना जाता है। श्रीगुणभद्राचार्य संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ कवि, उत्कृष्ट ज्ञानी और महान तपस्वी थे । आपका समस्त जीवन साहित्य-साधना में ही व्यतीत हुआ है।
आपकी तीन रचनाएँ उपलब्ध होती हैं - उत्तरपुराण, आत्मानुशासन और जिनदत्तचरितकाव्य । इसके अतिरिक्त आपने अपने गुरु की अपूर्ण कृति आदिपुराण
20 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय