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महापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण)
जैन साहित्य चार भागों में विभाजित है
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1. प्रथमानुयोग
2. करणानुयोग
3. चरणानुयोग
4. द्रव्यानुयोग
इनमें से यहाँ हम सर्वप्रथम प्रथमानुयोग के प्रमुख ग्रन्थों का परिचय लिख रहे हैं। प्रथमानुयोग में मुख्य रूप से पुराण, महापुराण प्राप्त होते हैं; इसलिए प्रथमानुयोग को जानने के लिए सर्वप्रथम हमने तीन प्रमुख पुराणों का परिचय दिया है। वे हैं - महापुराण, पद्मपुराण और हरिवंश पुराण ।
पुराणों का महत्त्व
सबसे पहले पुराणों का क्या महत्त्व है, उनके अध्ययन से क्या लाभ है, इन पुराणों में क्या-क्या वर्णित है - इन सब प्रश्नों के उत्तर देते हुए महापुराण और पुराण के महत्त्व और आवश्यकता पर प्रकाश डालेंगे ।
1. सबसे प्रमुख बात यह है कि पुराणों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का वर्णन होता है ।
2. चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण और तीर्थंकरों के चरित्र का वर्णन पुराणों में किया जाता है।
3. पुराण अपने काल के ज्ञानकोश होते हैं। इनमें इतिहास, भूगोल, संस्कृति, समाज, राजनीति और अर्थशास्त्र आदि विषयों का समावेश होता है । 4. समकालीन परिस्थितियों और सामाजिक समस्याओं का वर्णन होता है । 5. पुराण परवर्ती सैकड़ों ग्रन्थों के उपजीवी होते हैं अर्थात् कथाकोश और चरित्र आदि ग्रन्थों का आधार पुराण ही होते हैं । रस, छन्द, अलंकार, महापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण ) :: 17