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जैन लेखकों ने अपनी बात कही है। उन्होंने भाषा को नहीं, भावों को अधिक महत्त्व दिया है।
अब यह कृति पाठकों के हाथों में सादर समर्पित की जा रही है। हम आशा करते हैं कि पाठक अवश्य ही इसका अध्ययन करेंगे और इसे पसन्द भी करेंगे। इस कृति के अध्ययन से उन्हें बड़ा लाभ होगा। वे जैन धर्म के 25 महान ग्रन्थों की सम्पूर्ण विषय-वस्तु से संक्षेप में सरलतापूर्वक परिचित हो जाएँगे। तथा इसके द्वारा उन्हें उन मूल ग्रन्थों में प्रवेश की क्षमता भी प्राप्त हो सकेगी।
आशा है सभी लोग हमारी भावना समझेंगे और इस सुन्दर कृति का लाभ आनन्दित होकर उठाएँगे। यदि अभी भी आपका कोई सुझाव हो तो हमें अवश्य बताएँ, ताकि भविष्य में सभी को उसका लाभ मिल सके।
- प्रो. वीरसागर जैन
तेरह