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________________ प्रस्तुति जैन साहित्य परम्परा अपने आप में बहुत समृद्ध रही है। साक्षात् तीर्थंकर भगवान के दिव्यज्ञान (केवलज्ञान) के द्वारा दिखाए गये विश्व के स्वरूप को, तीर्थंकर और गौतम गणधर की वाणी को और उनके उपदेशों को हमारे आचार्यों ने जैन ग्रन्थों के रूप में सजाया और सँवारा है। जैन साहित्य परम्परा में हमारे आचार्यों ने अथक परिश्रम से संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश आदि अनेक भाषाओं में हजारों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है। इन ग्रन्थों में आचार्यों ने हमें ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, भूगोल, खगोल, गणित, राजनीति, ज्योतिष, कला, वास्तु, दर्शन, ध्यान, योग, इतिहास, भेदविज्ञान और मनोविज्ञान आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान किया है। परन्तु वर्तमान समय में आम जनता इन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों द्वारा, इन विषयों से परिचित नहीं हो पा रही है। क्योंकि ग्रन्थों की भाषा कठिन होती है और आकार भी अधिक होता है। अल्पज्ञान और समय अभाव के कारण बहुत से श्रावक इन ग्रन्थों का अध्ययन नहीं कर पाते हैं। अतः हमारी ऐसी भावना थी कि हम आम जनता के लिए सरल भाषा में एक ऐसी पुस्तक की रचना करें, जिसमें एक साथ कुछ प्रमुख महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का परिचय हो, ताकि आम जनता सरलता से कम समय में ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों से परिचित हो सके। इसी भावना को ध्यान में रखते हुए आम जनता के लिए समर्पित है यह पुस्तक प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय'। इस पुस्तक में प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय, ग्रन्थों का महत्त्व उनकी विषयवस्तु एवं किस ग्रन्थ में क्या-क्या विषय दिया गया है, इसको हमने सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया है। . . ---
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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