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________________ તપશ્ચર્યા अनशन ३०. ३१. बाह्य तप के छः भेद है १. अनशन, २. उणोदरी, ३. भिक्षाधरी, ४. परित्याग, ५. कायक्लेश और ६. प्रतिसंलिनता । आभ्यंतर तप के छः भेद है - १. प्रायश्चित, २. विनय, ३. वैयावच्च, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान और ६. काउसग्ग ३३. - आहार पच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिदइ । - उत्तराध्ययन सूत्र २६ / ३५ आहार का प्रत्याख्यान (त्याग) अनशन कहलाता है। इससे जीव आशा का व्यवच्छेद करता है, अर्थात् लालसाओं से मुक्त हो जाता है । जस्स असणमप्पा तं पि तवो तप्पडिच्छ्गा समणा । अण्णं भिक्खमणेसण मधते समणा अणाहारा ॥ - प्रवचनसार ३ / २९ ३२. तदेव हि तप: कार्य, दुर्ध्यानं यत्र नो भवेत् । ये न योगा न हीयन्ते, क्षीयन्ते नेन्द्रियाणि च ॥ पर वस्तु की आसक्ति से रहित होना ही आत्मा का निराहार रुप वास्तविक अनशन तप है । अस्तु, जो श्रमण भिक्षा में दोष रहित शुद्ध आहार ग्रहण करता है, वह निश्चय दृष्टि से अनाहार तपस्वी ही है । तपोष्टक ( यशोविजयजी कृत ) प्र - ६ ... सो नाम अणसण तवो, जेण मणोमंगुलं न चितेइ । जेण न इंद्रिय हाणी जेण य जोगा न हायंति ॥ तव पैसा ही करना चाहिए, जिसमें दुर्ध्यान न हो और इन्द्रियों क्षीण न हों। योगों में हानि न हो । ४८७ मरणसमाधि प्रकीणंक १३४ वही अनशन तप श्रेष्ठ है, जिससे कि मन अनशन न सोचे, इन्द्रियों की हानि न हो, औप नित्य प्रति की योग-ध्रम क्रियाओं में विघ्न न आए ।
SR No.023263
Book TitleTapascharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanmuni
PublisherAjaramar Active Assort
Publication Year2014
Total Pages626
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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