SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 528
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ તપશ્ચર્યા પ્રકરણ - ૬ १८. निउणो वि जीव पोओ, तव संजम मारुअ विहूणो । - आचारांगनियुक्ति ९६ शास्त्रज्ञान में कुशल साधक भी तप, संयम रुप पवन के बिना संसार सागर में तैर नहीं सकता। १९. कसेहिं अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं । - आचारांग १/४/३ तप के द्वारा अपने को कृश करो, तन-मन को हल्का करो । अपने को जीर्ण करो, भोगवृत्ति की जर्जर करो । २०. अप्पपिण्डासि पाणासि, अप्पं भासेज्ज सुव्वए । - सूत्रकृतांग १/८/२५ सुव्रती साधक कम खोये, कम पीये और कम बोले । २१. णो पाणभोयणस्स अतिमत्तं आहारए सया भवई । - स्थानांगसूत्र ९ ब्रह्मचारी को कभी भी अधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए । २२. अणण्हये तवे चेव ।। - भगवतीसूत्र २/५ तप से पूर्वबद्ध कर्मो का नाश होता है । २३. जं मे तव नियम-संजम-सज्झाय जाणाप्रवस्सय मादीएसु जोगेसु जयगा, सेतं जता । - भगवतीसूत्र १८/१० तप, नियम, संजम, स्वाध्याय, ध्यान, आवश्यक आदि लोगों में जो बनना विवेक मुक्ति प्रयुक्ति है, यह मेरी वास्तविक ...... । २४. भीतो तव संजम पि हु मुंएज्जा । भीतो व भरं न नित्यरेज्जा । - प्रश्नव्याकरण २/२ -
SR No.023263
Book TitleTapascharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanmuni
PublisherAjaramar Active Assort
Publication Year2014
Total Pages626
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy