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________________ राजवंश का पहला शासक हर्षदेव था। इसके काल में खजुराहो का मातंगेश्वर मंदिर बना। यह 905-925 ई. तक शासनारूढ़ रहा। इसके पुत्र यशोवर्धन (925-950 ई.) ने साम्राज्य का विस्तार किया व लक्ष्मण मंदिर का निर्माण कराया। यशोवर्धन का पुत्र धंग (950-1003) के शासनकाल में चंदेल शासकों की प्रतिष्ठा चरमोत्सर्ग पर थी। इसने प्रतिझरों की सत्ता को पूर्णतः अस्वीकार कर स्वाधीनता घोषित की थी। इसका राज्य कालिंजर से मालव नदी तक, मालव नदी से कालिंदी, चेदि व ग्वालियर तक विस्तृत था। यह कला का महान समर्थक था। इसने ही विश्वनाथ मंदिर, पार्श्वनाथ जिनालय आदि मंदिर बनवाये थे। धंग के बाद उसका पुत्र विद्याधर (1018-1029 ई.) चंदेल राजवंश का शासक बना। इसने कलचुरियों व परमारों पर विजय पाई थी। इसने खजुराहो में कंदरिया महादेव का मंदिर बनवाया। खजुराहो में देव मूर्तियों व मंदिरों के निर्माण की परंपरा मदन वर्मन (1158 ई.) तक निरन्तर चलती रही। इसी अवधि में ऋषभनाथ व अन्य जिनालयों का निर्माण किया गया। मदनवर्मन के उत्तराधिकारी परमर्दिदेव के शासनकाल में महोवा में एक विशाल जिनालय का निर्माण हुआ व उसमें सुमतिनाथ व नेमिनाथ भगवान की मूर्तियां स्थापित कराई। इसी के शासनकाल में 1180 में अहार क्षेत्र में भगवान शान्तिनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमा को भी प्रतिष्ठिापित किया गया। खजुराहो के पार्श्वनाथ जिनालय को श्रेष्ठि पाहिल ने सात वाटिकायें दान में दी थी। खजुराहो के 1075 ई. के मूर्तिलेख में श्रेष्ठि वीबनशाह की भार्या पद्मावती द्वारा आदिनाथ भगवान की मूर्ति स्थापित करने का उल्लेख है। यहीं के 1148 के एक अन्य लेख में श्रेष्ठि पाणिधर व उसके तीन पुत्रों द्वारा जैन मंदिर व मूर्तियों के निर्माण का उल्लेख मिलता है। यहीं के 1158 ई. एक अन्य लेख में पाहिल के वंशज एवं गृहपति कुल के साधु साल्हे द्वारा भगवान संभवनाथ की मूर्ति स्थापना का उल्लेख भी मिलता है। लेख में साल्हे के पुत्रों महागण, महाचन्द्र, शनिचन्द्र, जिनचन्द्र, उदयचन्द्र आदि के नाम भी दिये हैं। इस प्रकार खजुराहो के विभिन्न मूर्तिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि व्यापारी परिवार के पाहिल एवं उसके पिता और अन्य पूर्वजों तथा उत्तराधिकारियों ने लगभग 200 वर्षों तक (954-1158 ई.) जैन मंदिरों व मूर्तियों के निर्माण व उनकी स्थापना में पूरा सहयोग दिया था। लेखों में लाखन, कुमारसिंह, पापट व रामदेव आदि शिल्पियों के नाम भी मिलते हैं। खजुराहो व अन्य स्थलों के लेखों में विभिन्न दिगंबर जैन आचार्यों के भी उल्लेख मिलते हैं। जिनसे संपूर्ण क्षेत्र में जैन मंदिरों एवं मूर्तियों के होने तथा उनके स्वतंत्र विचरण का संकेत मिलता है। इनमें वासवचन्द्र, श्री देव, कुमुदचन्द्र, देवचन्द्र आदि जैनाचार्य प्रमुख हैं। खजुराहो में 950-1150 के मध्य की लगभग 200 से अधिक जिन-प्रतिमायें मध्य-भारत के जैन तीर्व.45
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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