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________________ 6. बड़ी मूर्ति जिनालय- अयोध्या के रायगंज स्थित एक विशाल परिसर में यह भव्य व आर्कषक जिनालय स्थित है। यहाँ कुल मिलाकर तीन पृथक-पृथक जिनालय बने हुये हैं। मुख्य जिनालय के बायीं ओर तीन चौबीसी जिनालय स्थित हैं। इस जिनालय में भरतक्षेत्र की भूत, वर्तमान व भविष्य की तीन चौबीसी निर्मित की गई है। यह एक कमलाकार आकृति पर स्थित है। मंदिर में परिक्रमापथ भी है। मुख्य जिनालय के दायीं ओर भगवान श्री ऋषभदेव का समवशरण मंदिर स्थित है। इस जिनालय में भगवान के समवशरण की रचना की गई है। यह जिनालय आकृति में गोलाकार है। जिससे जिनालय की परिक्रमा की जा सकती है। समवशरण के मध्य में शीर्ष पर भगवान ऋषभनाथ की चारों दिशाओं में प्रतिमायें विराजमान हैं। मुख्य दरवाजे के सामने स्थित इस भव्य व विशाल जिनालय में भगवान ऋषभनाथ की 31 फीट ऊँची संगमरमर से निर्मित भव्य व आकर्षक प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा उत्तर भारत की विशालतम प्रतिमा है। इसके बायीं ओर एवं दायीं ओर कुछ दूरी पर 3-3 फीट ऊँची तीर्थंकरों की ख गासन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये सभी प्रतिमायें लगभग 4-4 फीट ऊँची व अति सुंदर हैं। ये प्रतिमायें भगवान श्री धर्मनाथ, चन्द्रप्रभु, अजितनाथ, अभिनंदन नाथ, सुमतिनाथ व श्री अनन्तनाथ भगवानों की हैं। इस जिनालय के प्रथम तल पर भी दो वेदिकायें स्थित हैं। ये वेदिकायें क्रमशः बायें व दायें किनारों पर स्थित हैं; जिनमें कुछ प्राचीन छोटी-छोटी प्रतिमायें रखी हुई हैं। एक वेदिका पर रत्नमयी प्रतिमा भी विराजमान है। - श्रद्धालुओं को इस महान व प्राचीनतम जन्मभूमियों के दर्शन अवश्य करना चाहिये व पुण्य लाभ लेना चाहिये। यहाँ दर्शनार्थियों के भोजन की भी व्यवस्था है। अयोध्या में वैसे तो सैंकड़ों दर्शनीय स्थल हैं। क्योंकि यहाँ का कण-कण पवित्र है। फिर भी रामकोट मुहल्ला स्थित रामजन्मभूमि, हनुमानगड़ी, दशरथमहल, लवकुशमहल, लक्ष्मण मंदिर विशेष दर्शनीय हैं। एक बार जो गया अयोध्या उसका हुआ भला है। भक्तों को भगवान बनाने वाली यहाँ कला है।। श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर भगवान श्री संभवनाथ का जन्म इसी श्रावस्ती नगरी में हुआ था। इस नगरी का अपना अलग ऐतिहासिक महत्व है। यह तीर्थ-क्षेत्र अयोध्या से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अयोध्या से गोंडा, बलरामपुर होकर श्रावस्ती जाना चाहिये। यही वह पवित्र स्थान भी है; जहाँ गौतमबुद्ध को बोधि प्राप्ति हुई थी। बोधिवृक्ष यहीं है। एक परिसर से बोधिवृक्ष के 178 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ .
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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