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खजुराहो आते हैं और वहां के मंदिरों की कला देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। देवगढ़ तो जैन कला का विश्व ज्ञान कोष जैसा है ऐसा स्थान अन्यत्र नहीं है। विश्व के कला मर्मज्ञ तथा तीर्थ यात्री यहां के जिनबिम्बों के अद्वितीय भंडार को देखकर न केवल प्रसन्न होते हैं, अपितु अपने ज्ञान-भंडार में भी वृद्धि करते हैं। इन बुंदेलखंड के जैन तीर्थों में अन्य तीर्थ-क्षेत्र, उदाहरणार्थ- वानपुर, थूबौन जी, चंदेरी सेरीनजी आदि को सम्मिलित किया जाना उचित है।
बुंदेलखंड के तीर्थ-क्षेत्र प्राचीनतम भी हैं और नवीनतम भी। ऐतिहासिकता को ध्यान में रखते हुए बुंदलेखंड के तीर्थ-क्षेत्रों को हम निम्न श्रेणियों में भी वर्गीकृत कर सकते हैं।
___ 1. प्राचीनतम तीर्थ-क्षेत्र : ये वे तीर्थ-क्षेत्र हैं; जहां का जैन इतिहास व पुरासंपदा 5वीं सदी से भी पूर्व की है। सोनागिरि, नैनागिरि, द्रोणगिरि, कुंडलपुर, पावागिरि, सीरगिरि आदि प्राचीनतम तीर्थ-क्षेत्र हैं।
2. प्राचीन तीर्थ-क्षेत्र : ये तीर्थ-क्षेत्र 5वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य के प्रतीत होते हैं। ऐसे तीर्थ-क्षेत्रों में देवगढ़ जी, सेरोन जी, पचराई जी, गोलाकोट जी, बूड़ी चंदेरी, अहार जी, पपौरा जी आदि आते हैं।
3. मध्य युगीन तीर्थ-क्षेत्र : मध्य युग के प्रमुख तीर्थ-क्षेत्रों में (जिनका अस्तित्व 14वीं से 19वीं शताब्दी तक है) चंदेरी जी, पजनारी जी, पटेरिया जी, पटनागंज के नाम प्रमुखता से आते हैं।
4. नवीन तीर्थ-क्षेत्र : ऐसे तीर्थ-क्षेत्र 20वीं सदी में अस्तित्व में आये। ऐसे तीर्थ-क्षेत्रों में मढ़िया जी प्रमुख हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 15