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तीर्थ क्षेत्रों का वर्गीकरण
दर्शनं देव देवस्य दर्शनं पापनाशनम् । दर्शनं स्वर्ग सोपानं दर्शनं मोक्षसाधनम् ।।
प्राचीन भारतीय संस्कृति में जैन तीर्थ क्षेत्रों का अपना एक विशिष्ट महत्व है। बुंदेलखंड की पावन धरा पर अनेक प्राचीन तीर्थ क्षेत्र स्थित हैं; जो इस बात के प्रमाण हैं; कि इस क्षेत्र पर जैनधर्म का अधिक प्रभाव रहा है । इस धरा पर प्राचीनतम तीर्थ क्षेत्रों से लेकर नवीनतम तीर्थ क्षेत्र स्थित हैं। यहां सिद्धक्षेत्र भी हैं; अतिशय क्षेत्र भी हैं; साधना क्षेत्र भी हैं; और प्रभावना क्षेत्र भी हैं । बुंदेलखंड के अधिकांश जैन तीर्थ क्षेत्र शहरों के कोलाहलमय व भीड़-भरे वातावरण से
दूर, सुरम्य व शान्त प्राकृतिक वातावरण में स्थित हैं; जहां पहुँचने मात्र से मन को अपूर्व शान्ति मिलती है। बुंदेलखंड को यदि हम तीर्थ क्षेत्रों की धरती कहें; तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन तीर्थ क्षेत्रों की वंदना से हमें अलौकिक शान्ति का अनुभव तो होता ही है; हम विभिन्न उदारमना राजवंशों के काल में पनपी शिल्पकला से भी परिचित होते हैं । धर्मलाभ के साथ-साथ हमें ज्ञान लाभ भी प्राप्त होता है।
बुंदेलखंड के तीर्थ क्षेत्रों को हम अनेक आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं। धार्मिक आधार पर हम इन तीर्थ क्षेत्रों को चार भागों में विभाजित कर सकते हैं। 1. सिद्धक्षेत्र : ये वे तीर्थ क्षेत्र हैं; जहां से भव्य - आत्माओं ने सांसारिक दुःखों व जन्म-मरण के चक्करों से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा पाया और मोक्ष लक्ष्मी का वरण किया। इनमें ऐसे तीर्थ क्षेत्र भी सम्मिलित किये जाते हैं, जहां तीर्थंकरों के पांच कल्याणकों में से एक या उससे अधिक कल्याणक संपन्न हुए हैं तथा जहां से महामुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया है। ऐसे सिद्धक्षेत्रों में कुंडलपुर, द्रोणगिरि, नैनगिरि पावागिरि, सोनागिरि, अहारजी आदि प्रमुख हैं ।
2. साधना क्षेत्र : ये वे तीर्थ क्षेत्र हैं; जहां रहकर आचार्यों, उपाध्यायों, साधुओं व श्रावकों ने साधना की व अपने जीवन को धन्य बनाया। इन तीर्थ क्षेत्रों में रहकर इन्होंने कठोर तप किये, घोर उपसर्ग सहे व अपने कर्मों के मल को दूर करने का प्रयास किया व जनहित में शास्त्रों आदि की रचनाएं कीं व जन-कल्याण
तु धर्मोपदेश भी दिये। ऐसे तीर्थ क्षेत्रों में देवगढ़, सीरगिरि (श्रेयांस गिरि), सेरोन जी, द्रोणगिरि, बूढ़ी चंदेरी, गोलाकोट, पचराई आदि तीर्थ क्षेत्रों के नाम प्रमुखता से आते हैं।
3. अतिशय क्षेत्र : ये वे तीर्थ क्षेत्र हैं; जहां देवकृत अतिशय होते रहे हैं व कहीं-कहीं वर्तमान में भी होते हैं । इन तीर्थ क्षेत्रों में प्रायः धर्मावलम्बी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की इच्छा लेकर आते हैं; और उनकी मनोकामनाएं पूरी
मध्य-भारत के जैन तीर्थ ■ 13