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के लिए उन्हें अलग-अलग गोत्र दिये गये। एक-एक गोत्र से सैकड़ोंहजारों लोगों का सम्बन्ध जोड़ा गया। खरतरगच्छ द्वारा अब तक दो सौ से अधिक गोत्र स्थापित हुए हैं। ___ श्री सोहनराज भंसाली के अनुसार राजस्थान में जो ओसवाल विपुल संख्या में दिखाई दे रहे हैं, उनमें से अधिकांश के पूर्वज आचार्य जिनेश्वरसूरि व उनके शिष्य-प्रशिष्य अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनचंद्रसूरि आदि द्वारा प्रतिबोधित हैं। इनमें सबसे अधिक श्रेय आचार्य जिनदत्तसूरि को ही प्राप्त है। आज इसी परम्परा के गुरुओं के उपदेशों का ही फल है कि हम निरामिषाहारी हैं, अहिंसा के उपासक हैं, जैन धर्म के अनुयायी हैं।
खरतरगच्छाचार्यों द्वारा प्रतिबोधित गोत्र निम्नलिखित हैं, जिनका मूल गच्छ खरतर हैओस्तवाल
खजांची आयरिया
खींवसरा कटारिया
गणधर चौपड़ा कठोतिया
गांधी कवाड़
गिडिया कंकुचौपड़ा
गोलेच्छा कांकरिया
गोडवाडा कांस्टिया
गुलगुलिया कूकडा
गधैया कुंभट
गांग कोटेचा
गेलडा कोठारी
गडवाणी खटोड़
घोड़ावत १ ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृष्ठ ७३
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