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________________ सं० १२७४ में जिनपतिसूरि ने भावदेव को दीक्षा दी । श्रेष्ठि स्थिरदेव के अत्याग्रहवश " दारिद्रे रक" गाँव में चातुर्मास किया । वहाँ भी पूर्ववत् नन्दी स्थापना की। सं० १२७५ में जाबालिपुर आकर ज्येष्ठ शुक्ला १२ के दिन भुवन श्री जगमति तथा मंगलश्री इन तीन साध्वियों को और विमलचन्द्र, पद्मदेव इन साधुओं को दीक्षा दी। सं १२७७ में पालनपुर में आपने अनेक प्रकार की धर्मशासनप्रभावना की । किन्तु वेदनीयकर्म के प्रभाव से उनके मूत्राशय में ग्रन्थि हो गई और मूत्रावरोध हो गया । अतः आषाढ़ शुक्ला १० को जिनपतिसूरि ने गच्छ संचालन का भार गणि वीरप्रभ को देने का संकेत कर अनशनपूर्वक समाधिमरण को प्राप्त किया । प्रह्लादनपुर में इनके नाम का भव्य स्तूप बना था । ' आचार्य जिनपतिसूरि का शिष्य समुदाय विस्तृत था । प्राप्त संकेतानुसार उनके शताधिक शिष्य थे । उन्होंने अनेक दीक्षाएँ, प्रतिष्ठाएँ, ध्वजदण्डस्थापना, पदस्थापना महोत्सव एवं शास्त्रार्थ किये थे । उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हमने उनका विवेचन भी किया है। चामत्कारिक प्रसंग :- वृद्धाचार्य प्रबन्धावली में जिनपतिसूरि के लिए एक आलौकिक प्रसंग आकलित है। उसके अनुसार आसीनगर में प्रतिष्ठा महोत्सव था । एक विद्यासिद्ध योगी महोत्सव में भिक्षा-प्राप्ति हेतु आया, किन्तु किसी ने उसे भिक्षा नहीं दी । इससे वह रुष्ट हो गया । वह मूलनायक बिम्ब को कीलित कर चला गया । प्रतिष्ठा के समय जब सारे संघ ने प्रतिमा को उठाना चाहा, श्रीमत्प्रह्लादनपुरवरे प्रोन्नतस्तु परत्ने, स्फूर्जन्मूर्ति जिनपतिंगुरुं रत्नसानोजनन्दा | - श्री जिनपतिसूरि स्तूप कलशः, (३) २२०
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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