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(सिरि भूवलय
भूवलय के काव्य बंध
कुमुदेन्दु ने अपने काव्य को अक्षरों में नहीं लिखा । पहले से चर्चित गौतम गण धर के पूर्वे काव्य करण सूत्र, मंगल पाहुड अथवा मंगल प्राभृत के भाँति ही इसी रीति में पाहुडों को सेनगणाचार्य विश्व सेन ने लिखा होगा इन सब को आधार रख कर कन्नड, प्राकृत, संस्कृत में भूत बलि द्वारा रचित भूवलय के भाँति ही नागार्जुन के कक्षपुट गणित के भाँति ही स्वयं अंकों में गणित पध्दति द्वारा गुणाकार करते हुए अंकों में लिखा। आपके पहले के आचार्यों की भाँति आप
ओदीनोलंतर मूहूर्तदी सिध्दांत । दादी अंत्यननेल्ला चित्ता।। साधिपराज अमोघवर्षन गुरु । साधिप श्रम सिध्द काव्य।। (९-१९५)
अंतर मूहूर्त अर्थात केवल ४६ मिनट में इस काव्य को रचा है कहते हैं। सर्वभाषा मयी महा काव्य को प्रौढ- मूढ दोनों को अनुकूल हो, प्रौढ-मूढ दोनों को एक ही हो (१-८) सरल कर्माटक के (१०-३३) सरल होने पर भी प्रौढ विषय के (१०-३८) अपने देशीय भाषांक काव्य (११-२८) को रचा।।
___७१८ भाषाओं को कन्नड काव्य में संयोजित करने के लिए कुछ बंधों का प्रयोग किया गया है । श्रेणी बंध में आए हुए कन्नड काव्य के पहले अक्षरों को ऊपर से नीचे पढते जाए तो वह प्राकृत काव्य होगा। बीच के २७वें अक्षर से नीचे पढे तो वह संस्कृत काव्य बनेगा । इस रीति से बंधों को अलग-अलग रीतियों से देखा जाए तो विविध बंधों में बहु विधि की भाषाएं आयेंगी, ऐसा कवि कहते हैं ।
___कवि बंधों के नाम इस प्रकार कहते हैं चक्र बंध, हँस बंध, पद्म, शुध्द, नवमांक बंध, वरपद्म, महापद्म, द्वीप, सागर, पल्या, अनुबंध, सरस, शलाका, श्रेणी, अंक, लोक, रोम कूप, क्रौंच, मयूर, सीमातीत बंध, कामन, पदपद्म, नख, सीमातीत लेख्य बंध इत्यादि बंधों में कव्यों की रचना की है। काव्य के आगे के भागों का विवरण, अंक बंधों में से बाहर आने के बाद, प्राप्त होगा, ऐसी आशा करते