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डॉ. डी. वीरेंद्र हेग्गडेजी श्री धर्मस्थल - 574216 कर्नाटक
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शुभ संदेश
हमें यह ज्ञात होने पर नितांत प्रसन्नता हुई कि भारतीय संस्कृति की महिमा एवं गरिमा को प्रदर्शित करनेवाला महाग्रंथ - श्री कुमुदेंदु गुरु द्वारा विरचित सर्वभाषामयी कन्नड महाकाव्य 'सिरि भूवलय' का हिन्दी में प्रकाशन हो रहा है।
जैन मुनि श्री वीरसेनाचार्यजी से विरचित संस्कृत प्राकृत भाषा मिश्रण का सिद्धांत ग्रंथ 'षट्खंडागम' धवला टीका ग्रंथ के आधार पर रचित एक मात्र ग्रंथ होने के निमित्त सर्वत्र इस की भूरि-भूरि प्रशंसा की जा रही है ।
पंडित यल्लप्पा शास्त्री द्वारा इस का अनुसंधान हुआ और श्री कर्ल मंगल श्रीकंटैया द्वारा इस का संपादन हुआ तथा श्री के. अनंतदवाराव जैसे ग्रंथ-प्रचारक ने इसका निरंतर प्रसार किया एवं श्री एम. वाय. धर्मपाल जैसे ग्रंथ-प्रति-संरक्षक मिले। इन सभी के सम्मिलित प्रयत्नों के कारण इस महान अमूल्य सांस्कृतिक संपदा की रक्षा हो सकी एवं राष्ट्र के विद्वत्ता-प्रेमियों तथा जिज्ञासुओं के कर-कमलों तक यह रचना पहुँच सकी ।
कर्नाटक के कन्नड भाषा-भाषियों के साथ-साथ सारे भारत वर्ष के लोगों को इस महान् ग्रंथ का परिचय कराने के उद्देश्य से अव राष्ट्रभाषा हिन्दी में इस ग्रंथ के 1 से 8 अध्यायों का प्रकाशन हो रहा है।
यह तो अतीव आनंद का विचार है कि वेंगलोर के पुस्तक शक्ति प्रकाशन के श्री वाय. के. मोहन जी के अथक परिश्रम एवं उत्साह के कारण यह महान ग्रंथ सारे भारत के शास्त्र एवं संस्कृति पर आस्था रखनेवालों को भी उपलब्ध हो रहा है ।
हम आशा करते हैं कि सारे भारत वर्ष के संस्कृति-प्रेमी लोग इसका सादर स्वागत करेंगे तथा इस के अध्ययन के द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास कर लेंगे। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि इस ग्रंथ के प्रकाशक को निरंतर प्रगति के पथ पर चलने की शक्ति प्रदान करें ।
"इति वर्धतां जिनशासनम् ।"
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Langgade
(डॉ. डी. वीरेंद्र हेग्गडे)
धर्मस्थल |