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सिरि भूवलय
सर्व भाषात्मक दिव्य वाणी को समझ समस्त जनता को प्रसारित कर सर्व भाषात्मक के एक दिव्य वाणी को स्पष्ट रूप से और क्रमबध्द रूप से प्रकट करने की शक्ति कन्नड भाषा को है ऐसा कहते हैं। आदि तीर्थंकर के वृषभ अपनो दोनो बेटीयों को दिए गए अंकाक्षर कन्नड के ही हैं, कहते हैं। आदि तीर्थंकर अपने मोक्ष प्राप्त करने से पहले अपनी पहली पत्नी यशस्वति के पुत्र भरत को समस्त साम्राज्य और दूसरी पत्नी के पुत्र गोमट्ट को पौदनपुर बाँटते हैं।
बड़ी बेटी ब्राह्मी और छोटी बेटी सौन्दरी मिलकर पिता से कुछ शाश्वत उपहार देने की प्रार्थना करते हैं। तब लौकिक रूप से सभी कुछ बाँट देने के बाद आदि तीर्थंकर अपनी बेटीयों को सकल ज्ञान साधन के आधार वस्तु देने का विचार कर ब्राह्मी को अपनी बाँयी गोदी में बिठाकर उसके बाएँ हाथ में अपने दाँ ए, ऐ, हाथ के अँगूठे से समस्त भाषा के पर्याप्त 'अ' से लेकर अ, इ, ऋ, ओ, औ, इन नौ ह्रस्व दीर्घ और प्लुत (दीर्घ से भी बडा) २७ स्वरों के बाद क, च, ट, त प इन वर्गों के २५ वर्गीय वर्गों को य, र, ल, व, श, ष, स, ह, इन आठ व्यंजनों को आगे अं, अः, अक, और फ़क :: इन चार आयोग वाहों को मिलाकर ६४ अक्षरों के वर्ण माला को रच कर ये तुम्हारे नाम में अक्षर बन कर समस्त भाषाओं के लिए यही पर्याप्त हो ऐसा आशीर्वाद दिया ।
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गोदी में बिठाकर उसकी दाँयी हथेली ० को लिखकर उसी को ठीक तरह से
दूसरी बेटी सौन्दरी को अपनी दाँयी
में अपने बाएँ अँगूठे से एक बिन्दु काट कर
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बिन्दु बना कर इन्हीं को एक साथ मिला कर एक ही रूप में पहचान कर इन अंकों को ही वर्ग पध्दति के अनुसार मिलाते जाए तो विश्व के सकल अणुपरमाणुओं की गणना के लिए पर्याप्त होगा, ऐसा कहा और ये अंक ही अक्षर हैं ऐसा सौन्दरी से कहा ।
इसी से १, २, ३, ६, ७, ८, ९, को घुमा कर पुनः
प्रत्येक वस्तु को दोनों में बाँटने के बाद एक को दिया हुआ दूसरे को दिए हुए से अलग है ऐसा जानकर ब्राह्मी के अक्षर ही सौन्दरी के अंक और सौन्दरी के अंक ही ब्राह्मी के अक्षर है ऐसा कह कर दोनों को दिया हुआ एक ही है ऐसा स्पष्ट किया।
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