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(सिरि भूवलय राजाओं द्वारा शासित कळ्वप्पु। अच्छे अनुभव वाला काव्य। आदियोळ उत्तम वर्णद सेनर। नादिय गंगर राज्य सादि अनादि गळु भयव सादिप। गोदमनिं बंद वेदा।। अ.१७१४४॥ आदि में उत्तम वर्ण की सेना । अनादि गंग का राज्य। सादि अनादि भय को साबित करने वाला वेद।
कुमुदेन्द्र द्वारा उल्लेखित गंगरसों में आपके द्वारा पहचाने गये गर्व गोटिटग के राजा सैगोट्ट शिवमार हैं, इसमें संदेह नही है। इस शिवमार को सैगोट्ट का नाम प्राप्त हुआ था ऐसा नगर के ३५वे शासन में कहा गया है
शिवमार देवं सैगोट्ट नेम्बेरडनेय पेसरं ताळ्दु शिवमार मतमेन्दु गजशास्त्रवं माडीमतं ऐवेल्वुदोशिवमारं। हीवल याद्यिपन सुभग कवितागुणं मं भूवलय दोल गजा क मोवनिगेयू मोनके वाडू मादुदे पेन्गुं
इस सैगोट्ट गोट्टिगा ने सुभग कविता गुण वाले भूवलय में गजाष्टक वनके वाडू (ओखली में कूटते समय गाने वाले गीत) बनें हैं ऐसा कहने के कारण अमोघ वर्ष अपने कवि राज मार्ग में कहे गए कन्नड के चत्ताण, बेदंडे (एक तरह का काव्य) नाम के पुरातन पद्य पध्दति में से यह भी एक होगा ऐसा सोचने का एक कारण है । ज्यादातर अमोघ. वर्ष के कहे गए पुरातन कवियों का काव्य यह चत्ताण बेदंड ही हो सकते हैं। कुमुदेन्दु दोनों पध्दतियों को अपने काव्य में खुल कर प्रयोग करते हैं ।
आज लोक गीतों में उपलब्ध ओखली में कूटते समय गाने वाले गीत इस चत्ताण बेदंड के रूप में ही हैं और कुछ कन्नड के पुराने व्याकरण तिवदी अथवा त्रपदी में है। कुमुदेन्दु के द्वारा अपने भूवलय में प्रयोग किए गए चत्ताण बेदंड, कन्नडीगा के तिवदी, अक्षर गण मात्रा गण में न होकर शगण अथवा शब्द गणों मे है। सैगोटट शिवमार के ओखली गीत के रीत को दिखाने वाले एक तिवदी को लोक साहित्य से उदघृत करते हैं:
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