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-(सिरि भूवलय
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स्वप्न कलद्द्दबहि रन्गवादा विद्या स्वप्नवळिये अदुल घुते ॥ ग्वप्वन्तु गणितदनन्तान्कवेल्लवु। स्वप्न जाग्रतदोळुनिन्द्* ॥४२॥ स*शरीर अशरीर सादि अनादिया यशदारु द्रव्यन्गळनुम् ॥ यशस्वति देवियमगळ्गेपेळिद दिव्य रससइद्धियन्कद गणित्अ* ॥४३॥ आ दिय कालद अवर याबाधद । साधित दिव्य कालदलि ॥ वाद्अमु*ळियदिह शुत ज्ञानदुत्पत्ति । यादिय शतदवतारल* ॥४४॥ व*दनदि न य व र आया मद अतिय । विदियादि गुणठाणदवर ॥ नु दिसिद श्रुतज्ञानदतिशय कालदे। मदुल म्णालद सविए* ॥४५।
डदयोग नाल्कु अनन्त ॥४६॥ ओदरलि आचार्य नमह ॥५८॥ म्द विरहित गति प्राप्त ॥७०॥ मि दुवु अतीन्द्रियवस्तु ॥४७॥ धिय उपाध्याय नमह ।।५९॥ स दयरोदुव स्वसमयवु ॥७ ॥ ण ददन्द उपमेयिल्लदुदु ॥४८॥ योदेयलि साधुगळिरलि
॥६०॥ ण दिदन्ते श्रुत केवलिगळ ॥७२।। मदवळिदात्मोत्थ सुखवु
॥४९॥ मीदवळीदयवर नेनेवे ॥६१॥ णाद वय्भवदि वन्दिसुव ॥७३॥ आदलु निन्देगळळीगुम्
॥५०॥ जी द मूरन्कद भन्ग ॥६२॥ ण दयन्ते हरियुव जीव स दवु केवल प्राभा पुन्ज
व दगलु समय पाहुडव ॥६३॥ ट्दयोग रतुनत्रयान्क यदेगेडिसुवुदु दुर्नयवम्
॥५२॥ आदलि अरवत्नाल्कन्क ॥६४॥ ठिदियवे स्वसमयवरिया ॥७६॥ के दगे हूविनषधियु ॥५३॥ च दुरिन द्व मचलवनु
॥६५॥ उदय कर्मद पुद्गलाणु ॥७७॥ वदगिद तिमिर हरान्क ॥५४॥ रिद्धिय अनुपमानन्त
॥६६॥ तदकलु परसमययान्क ॥७८॥ लदरलि जिनरिगे नमह
॥५५॥ त्दिय सम्योगवे सिद्ध ॥६७॥ मदवळिदारु भाषेगळ । ॥७९॥ ईदिन निन्ने नाळेयोळु
॥५६॥ त दियवे स्समय सार । ॥६८॥ हिद मिदु मधुर भूवलय ॥८०॥ भाद्र सख्यवु शिव सिद्ध् ॥५७॥ दधवु पुनह उक्तवल्ल ॥६९॥ स दयनाल्कने कालदन्ग ॥८ ॥ *स का व् य दनु भ वअ गणित ज्ञानद। वशद दिव्यागम्अ अदकु । यशवा बारह अन्गान्गी जा' । यशवळीसुवकर्मआळ* ॥१२१।। णी रववागिप स्आमा न्य प्रस्थार। दारयकेयुळ्ळम् सपुर। सारद 'वियलिय मलमूढ दमसणु'। दारदु त्तलिया' वतत् ॥८२।। य शवदरिम् अय्दनु भववागिसि । विषमत्व सम सम्ख्ये वर*सि ॥ हसद 'विविहपर चरण भूसा पसि । विष ‘यवुसुयदेदया' नत* ॥१२१।। म् नदि साधिसुअ अषी मातीतद । घन विद्यवरितवराद ॥ वनभू* वियेल्लव 'सुइरम्' पोरेदात्म । ननघन समुद्घातविवे दल* ॥८४॥
सनय द्वादश अन्गधररु ॥८६॥ यनगे अवेरडनु कोडलि ॥८८॥ जाणरु विगलित मदरु ॥९०॥ म नह पर्ययावधिधररु
॥८७॥ मन सिम्ह पीठवेर्दवरु ॥८९॥ णनयदि मूढत्ववळिदर्
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