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(सिरि भूवलय
२३.प्रश्नव्याकरण, २४.विपाकसूत्र, २५. ११अंग, २६.परिक्रमसूत्र २७.प्रथमानुयोग, २८.पूर्वगतचूळिके, २९.दृष्टिवाद ऐदु(पाँच)(चूळिके), ३०.पूर्वगतदलि, ३१.उत्पादागेणिय ३२.वीर्यानुवाद, ३३.अस्तिनास्ति प्रवाद(पूर्व), ३४.ज्ञानप्रवाद, ३५.सत्यप्रवाद, ३६.आत्मप्रवाद, ३७.कर्मप्रवाद, ३८.प्रत्याख्यान, ३९.विद्यानुवाद पूर्व, ४०.कल्याणवाद, ४१.प्राणावायु पूर्व, ४२.क्रियाविशाल, ४३.लोकबिन्दुसार, ४४. १४ पूर्व, ४५.अग्रेयणीय आशेयादिय एरडलि, ४६.पूर्वेय१४ ४७.पूर्वान्त, ४८.अपतान्त, ४९.ध्रुव, ५०.अध्रुव, ५१.चवनलब्धि, ५२.अध्रुव संप्रणधि, ५३.अर्ध, ५४.भौमावयाद्य, ५५.सवार्थ कल्पनीय, ५६.अतीत ज्ञान, ५७.अनागत, सिद्ध, ५८.उसह, ५९.सिद्ध, ६०.उपाध्याय, ६१.महाधवळ, ६२.जयधवळ, ६३.विजयधवळ, ६४.लोकसार, ६५.लब्धिसार, ६६.चारित्रसार, ६७.श्रावकाचार, ६८.सूर्यप्रज्ञप्ति, ६९.युक्तियुक्तागम, ७०.परमागम, ७१.तीर्थीकरांतसंतति ७२.मूलप्रकृति, ७३.उत्तरोत्तर प्रकृति, ७४.आशायुर्वेदविधि, ७५.दशधर्म, ७६.योगसार, ७७.रसवाद ७८.छशतद सूत्रांग
(इनमें १०, १४, ८, १८, १२, १२, १६, २०, ३०, १५, १०, १०, १०, १०, वस्तु
उपरोक्त सूची में १४ से लेकर २४ तक ग्यारह अंग उक्त हुए हैं। (आयारांग, सूयगडंग, ठाणांग, समवायांग, भगवती अथवा व्याख्यापन्नति, नायधम्मकहा, अंतगडदसा, अनुत्तरोववायियदसा, पण्हवागरनाइम, विवागसुयं) बारहवाँ अंग दिट्ठिवाय( दृष्टिवाद) । सेनगणों के लिए इस श्वेताबंरों द्वारा अंगीकृत ग्यारह अंग ज्ञात थे ऐसा कुमुदेन्दु कहते हैं । बारह उपांगों में उववाइअ(जौपपातिक), रायपसेनीय, जीवाभिगम, सूर्य, प्रज्ञप्ति आदि को कुमुदेन्दु ने कहा है । ___ बारहवें अंग, दिठिवाद में पाँच चूळिक हैं ऐसा वीरसेन ने और कुमुदेन्दु ने भी कहा है। चौथे चूळिक का नाम पूर्वगत है। उसमें १४ भाग हैं जिसमें दूसरा अग्रायणीय पूर्व। इस अग्रायणीय पूर्व में १४ भाग हैं जिसमें पाँचवें भाग का नाम च्यवनलब्धि है। च्यवनलब्धि के २० पाहुडों में से चौथे पाहुड का नाम कम्मपयडि है।
अग्रायणीय पूर्व के १४ वस्तुओं को पूज्यपाद ने श्रुतभक्ति में इस प्रकार से विवरित किया है।
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