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सिरि भूवलय
विशेष रूप से एक मुख्य विषय कहना चाहता हूं । चित्रकाव्य एक समस्या को उत्पन्न करता है। इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिये थोडा समय चाहिये। जिसके लिये एकाग्रचित्त होना आवश्यक हैं । वरना उसके सम्मुख एक क्षण भी नहीं बैठ सकते है । बैठकर ध्यान से समझने का प्रयास करते तो कुछ समस्याओं का समाधान जरूर प्राप्त होता । इस तरह समाधान मिलने पर मन को संतोष और संतृप्ति प्राप्त होगी। अर्थातः धीरे-धीरे समस्या का समाधान ढूंढना चाहिये ।
ऐसे अवसर को तलाश करनेवालों को हम कहां ढूंढें ? इस स्थिति में हम सिरि भूवलय' के द्वितीय संस्करण को देख रहें हैं । आज समस्याओं का सामना करने वाले साहसी युवकों की संख्या प्राचीन काल से भी अधिक है। गणक यंत्रों (कंप्यूटर) की शक्ति दिन पर दिन बढती जा रही हैं । सालों तक चलनेवाले समस्याओं को केवल कुछ ही घंटों में हल करने के नए बौद्धिक क्रम को इस युग में देख रहें हैं । विद्युन्मानशास्त्र और गणकशास्त्र दोनों के मिल ने से क्या चमत्कार होने वाले हैं इसका अंदाजा, साहित्य आसक्तों को अभी भी ज्ञात नहीं है।
इस कारण सिरि भूवलय जैसे चित्रकाव्य को संपूर्ण रूप से परिशीलन कर उससे प्राप्त सभी विषयों को संग्रहित कर, विस्तृत करना विद्वानों का कर्तव्य है। इस के लिये महाविद्यालय शोध कर्त्ताओं को नियुक्त कर सकता है। शोधकर्त्ताओं को आवश्यक वैज्ञानिक परिकरों (सामाग्री) को भी उपलब्ध करा सकता है। अर्थातः सिरिभूवलय' को शोध का विषय स्वरूप बनाना होगा। कन्नड भाषाविदों को, सृष्टिशील रचना में आसक्त लेखकों को, सवाल बना यह अत्यपूर्व ग्रंथ सिरि भूवलय' का विश्लेषण कितना आवश्यक है, यह स्ष्ट होता है।
द्वितीय संस्करण में संपादकों ने अनेक और अधिक सुविधाओं को प्रदान किया है। नये जोडे गए चक्रबंधों के विविध स्वरूप के बंधों की संख्या अधिक हुई है । चक्रों और अन्य स्वरूप चित्रों के साथ उन स्वरूप में रचित चित्रकाव्य भी हैं । इनका अध्ययन ही एक बौद्धिक व्यायाम और नए संशोधन के लिये मार्गदर्शक भी होगा । युवा विद्वानों को प्रयत्न करना चाहियें ।
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