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(सिरि भूवलय
संख्याविशेषातीत्वादसंखेयाः तदनुपलब्धेरसर्वज्ञत्वप्रसंग इति चीन्न तेनात्मनावसितत्वात
(तत्वार्थराजवार्तिका ५.८.१३) इस प्रकार गणितमान में
१.जघन्य संख्यात (२), २.मध्यम संख्यात (3,4, III-1), ३.उत्कृष्ट संख्यात (III IV-1), ४.जघन्य परीत असंख्यात(करणसूत्र), ५. मध्यम परीत असंख्यात(IV+1, IV+2 V-1), ६.उत्कृष्ट परीत असंख्यात(VII-1) ७. जघन्य युक्त असंख्यात( IV".), ८.मध्यम युक्त असंख्यात (VII+I, VII+2 IX-1), ९.उत्कृष्ट युक्त असंख्यात (x-1), १०. जघन्य असंख्यातासंख्यात (VII), ११.मध्यम असंख्यातासंख्यात (x-1, X+2, XII-1), १२.उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात (XIII-1), १३.जघन्य परीत अनंत (करण सूत्र) १४.मध्यम परीत अनंत (XIII+1, XII+2, xv-1), १५.उत्कृष्ट परीत अनंत (XVI-1), १६. जघन्य युक्त अनंत (XIII x XIII), १७.मध्यम युक्त अनंत (XVI+1, XVI+2.. XVIII-1), १८. उत्कृष्ट युक्त अनंत (XIX-1), १९ जघन्य अनंतानंत (XVI-2), २०. मध्यम अनंतानंत (XIX+1, XIX+2 XXI-1), २१. उत्कृष्ट अनंतानंत (केवल ज्ञान के अंश)
सूर्यप्रज्ञप्ति, त्रिकोलप्रज्ञप्ति आदि जैन ग्रंथों में इन संख्या को सिद्ध करने के उदाहरण मिलते हैं । IV को थे (जैन परीत असंख्यात) को प्राप्त करने के लिए निम्न उदाहरण मिलता है । अ, ब, ग, ड, चार गढों (गड्ढा) प्रथम भूमि भाग में खोदा जाए तो पहले अ गढे में-१९७, ७११, २९३, ८५५, १३१, ६३६, ३६३, ६३६, ३६३, ६३६, ३६३, ६३६, ३६३, ६३६, ३६३, ६ ४/,, इतने सरसों के दाने भरे जा सकते हैं ऐसा हिसाब लगाया गया है। खंडानंतर में भी गढों को खोद कर आखिर 'ड' गड्ढा पूर्ण होने पर पिछले ग गड्ढे में भरे जा सकने वाले सरसों के दानों की संख्या क्ष माना जाए तो वह जघन्य परीत असंख्यात अर्थात (IV) ____VII (जघन्य युक्त असंख्यात) को प्राप्त करना हो तो IV को पृथक कर, जितने एक अंक आएंगे उन्हें लिख कर, प्रत्येक के ऊपर IV को देय बना कर रखना चाहिए। इन देय को गुणा करें तो जघन्य युक्त असंख्यात प्राप्त होगा
IVi" = VII IViv? =VII2 IViv2 = x
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