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(सिरि भूवलय सिरि भूवलय अभिव्यक्ति प्रस्तावना
प्रसिद्ध ग्रंथ सिरिभूवलय का द्वितीय संस्करण मुद्रित होकर अब आपके अवलोकन के लिये तैयार है । इस ग्रंथ के प्रथम भाग के प्रकाशन से अनेक आसक्तों का ध्यान आकर्षित हुआ है । कन्नड राज्य के कोने कोने से कन्नड में आसक्त अन्य प्रांतों से सिरिभूवलय के विषय में अपने अभिप्राय को प्रकट कर उस ग्रंथ के संपूर्ण स्वरूप जानने के लिये विद्वानों की व्याकुलता को विचार से प्रकाशकों को समाधान मिला हैं । परंतु इसका मूल्य अधिक होने के कारण एक साथ प्रकाशित करना कष्टकर है । संपूर्ण ग्रंथ को इस समय प्रकाशित दो संस्करणों मे ही मात्र प्रकाशित करें तो भी कुल मिलाकर आठ संस्करण हो सकते हैं । इसलिये प्रकटित संस्करणों का विक्रय जितनी जल्दी होगा उतनी जल्दी प्रकाशित करना मुमकिन होगा । कुल ग्रंथ विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत होने के कारण तीव्र गति से उसका पूर्णसत्व प्रकट होगा। ग्रंथ के आगे बढ़ने के साथ-साथ कुतूहलजनक होने के कारण इस ग्रंथ को जल्द से जल्द मुद्रित करने का सारे प्रबंध जारी हैं ।
सिरिभूवलय एक श्रेष्ठ चित्रकाव्य है । चित्रकाव्य के अनेक प्रकार प्राचीन काल से रचित होते रहे परंतु उनका चमत्कारजन्य सुंदर अनुभव केवल विद्वान ही करते रहें । यह जनसामान्य संपत्ति नहीं रही। केवल विद्वानों के द्वारा ही उनकी सुंदरता प्रकट होती थी।
एक समय था जब संस्कृत भाषा में चित्रकाव्य की रचना अधिक होती थी। इन चित्रकाव्यों की संवृद्धि के लिये राजाओं का प्रोत्साहन और विद्वानों का स्पर्धा मनोभाव ही मुख्य कारण रहा है । इस प्रोत्साहन के कारण अनेक कवियों ने संस्कृत में चित्रकाव्यों की रचना की। उन कवियों के एक लंबी नाम सूची ही होगी। इस प्रकार के काव्यों की संख्या अत्यधिक होने के कारण उन कृतियों का मूल्य निश्चित करने के लिए एक प्रामाणिक सूत्र का होना अवश्य था । आलंकारों ने भी इन चित्रकाव्यों को सामान्यतया क्षुद्र ही समझा था थे। परन्तु अत्यधिक संख्या